बहुत दिन हो गये थे अपनी कोई ग़ज़ल सुनाये आपलोगों को। ...तो एक ग़ज़ल आपसब की नज्र। इस बार बारिश को रिझाने की मुहीम में मिस्रा-ए-तरह उछाला गया था "फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं"। जरा देखिये तो मेरा प्रयास कैसा है:-
उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं
बटोही रास्ते खो कर भी लें बलाएँ हैं
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
कहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
खुला है भेद सियासत का जब से, तो जाना
गुज़ारिशों में छुपी कैसी इल्तज़ाएँ हैं
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
...और हमेशा की तरह जिक्र कुछ गानों का जिनकी धुन पर इस ग़ज़ल को गुनगुनाया जा सकता है। मो० रफी साब के दो गाने याद आते हैं...एक तो "ये वादियाँ ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें " वाला है...और एक "न तू जमीं के लिये है न आस्मां के लिये" वाला है। एक और याद आ रहा है उन्हीं का गाया और जो मुझे बहुत पसंद भी है..."हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आये" । अरे हाँ, वो मुकेश साब का गाया "कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है" वाला गीत भी तो इसी धुन पर है।
उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं
बटोही रास्ते खो कर भी लें बलाएँ हैं
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
कहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
खुला है भेद सियासत का जब से, तो जाना
गुज़ारिशों में छुपी कैसी इल्तज़ाएँ हैं
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
...और हमेशा की तरह जिक्र कुछ गानों का जिनकी धुन पर इस ग़ज़ल को गुनगुनाया जा सकता है। मो० रफी साब के दो गाने याद आते हैं...एक तो "ये वादियाँ ये फ़िज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें " वाला है...और एक "न तू जमीं के लिये है न आस्मां के लिये" वाला है। एक और याद आ रहा है उन्हीं का गाया और जो मुझे बहुत पसंद भी है..."हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे कि कयामत हो और तू आये" । अरे हाँ, वो मुकेश साब का गाया "कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है" वाला गीत भी तो इसी धुन पर है।
"भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं"
बेहद उम्दा मेजर साहब !
बस युही लिखते रहिये ! शुभकामनाएं !
ईश्वर तुम्हे ऐसे ही हँसाता रहे...शुभकामनायें कंचन को !
ReplyDeleteकराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
ReplyDeleteफ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं.
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
बदकिस्मत हैं वो लोग जिनकी बहनों का जन्मदिन खास दोस्त के साथ पड़ जाये, बेचारे ना इधर के ना उधर के....! हमारी हमदर्दी आपके साथ है :) गीत सुनाई नही दे रहा। एमपी3 वर्ज़न भेजिये।
ReplyDeleteहम तो गुरुदेव के ब्लॉग पर इसे पढ़ने के बाद से ही बस लट्टू हुए घूम रहे हैं...क्या गज़ब के शेर निकाले हैं आपने...कितनी बार और कहाँ कहाँ तारीफ़ करें कुछ समझ नहीं आ रहा...अगर आज कंचन और आपके प्रिय मित्र का जन्म दिन एक साथ न आता तो शायद इतनी खूबसूरत ग़ज़ल भी आपके ज़ेहन से बाहर न आती इसकी कामयाबी में उन दोनों का ही हाथ है...मैंने जान बूझ कर उन दोनों का 'भी' नहीं लिखा...उन दोनों का 'ही' लिखा है...:))
ReplyDeleteमेरी दिली दाद कबूल करें और जल्दी जल्दी लिखते रहें...अपनों का जन्म दिन जिस दिन न हो, तब भी...
नीरज
वे कुछ खास शेर सुनने थे
ReplyDeleteमगर सुन नहीं पा रहा हूँ तो जिज्ञासा बेलगाम हुई जाती है, शायद उन शेर को सुन कर कोई हसीन सा दृश्य सोचता.
कंचन जी को इतने गहरे दिल से हुक्म देने के अधिकार का प्रयोग करते हुए देखता हूँ तो बहुत ख़ुशी होती है.
ग़ज़ल के आप सरताज हैं और उससे भी बड़ी बात की ग़ज़लें हम जैसे आम आदमियों की बनी हुई है अब तक.
कोई एक शेर नहीं वरन पूरी ग़ज़ल अपने आप में ज़िन्दगी के कई जुड़ा अनुभवों का कोलाज है.
आप कमाल के हैं,
इसी पन्ने पर मैं भी कंचन जो जन्म दिन की शुभकामनाएं दे देता हूँ, जन्म दिन असीमित खुशियाँ लाये...
आपके पन्ने पर लगा प्लेयर बिल्कुल ठीक है और आपकी ठोस आवाज़ में जो लरज़िश है, उसी में ये शेर सुन रहा हूँ, बड़ी ही मासूमियत से आपने हाल कह सुनाया है.
ReplyDeleteखुदा कसम!!! इन दिनों मूड कुछ ऐसा ही है .... कल रात फिर कुछ बजिया सजी.वक़्त ओर दो किरदारों के बीच......तुम्हे देखा ....गोया आज तुम भी वक़्त से लड़ रहे हो...........कुछ तारीखे कम्बखत तारीखे नहीं होती .....
ReplyDeleteदिल के उस कोने से उस खीचकर आज फिर उन्हें बीच में डाला है.........के आज के दिन फिर रगों में उन्हें ही बहना है........
बकोल कंचन जुलाई में पैदा होने वाली लडकिय सेंटी होती है ..हम मान लेते है .क्यूंकि कम्बखत हमारे दो जिगरी दोस्त इसी जुलाई में पैदा हुए है .ओर हम सोच रहे है वो कब कभी सेंटियाने की झलक दिखायेगे .....खैर ...गुरूजी को प्रणाम कहियेगा....ओर हाँ इस रिक्रोडिंग को दुरस्त करो ...सुनाई नहीं देता .....या रूबरू सुनायोगे !!!
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
ReplyDeleteसुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
Kaun se ashar chune jayen? Sabhi ek se badh ke ek hain!
Aur haan! Kanchan ji ko dheron shubhkaamnayen!
ReplyDeleteउन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
ReplyDeleteहक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
.......bahut khoob...
kanchan ko sneh shubhkamnayen
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
ReplyDeleteफ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
बेहतरीन !
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
ReplyDeleteकहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
सही बात है। मुकदमा तो उनपर चले।
bahut hii bhavbhini gazal.
ReplyDeletekanchan ji ko janamdin ki shubhkamnayein.
गौतम जी, हर शेर लाजवाब कर रहा है, समझ में नहीं आरहा कि किसकी तारीफ करूं, किसकी नहीं।
ReplyDelete………….
ये साहस के पुतले ब्लॉगर, इनको मेरा प्रणाम
शारीरिक क्षमता बढ़ाने के 14 आसान उपाय।
BaDe din baad aapko paDh paaya
ReplyDeleteKanchan ji ko janamdin ki badhai
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati
खुला है भेद सियासत का जब से, तो जाना
ReplyDeleteगुज़ारिशों में छुपी कैसी इल्तज़ाएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं"
सबने अपने-अपने मन के शेर चुने मैंने भी दो शेर चुन लिये हैं। बहुत खूब! मुझे ये देख कर खुशी हुई कि एक शाइर अपने दिलो-दिमाग और अपने भीतर के शाइर को हर तरह के हालात में सजग रखता हैै। बधाई अपने इस शाइर का ख्याल रखियेगा।
और हां हरजीत जी के विषय में जानकारी के लिए शुक्रिया। कंचन को मेरी भी जन्मदिन की शुभकामनाएं
कंचन को जन्म दिन की शुभकामनाएं!
ReplyDeleteगौतम जी ग़ज़ल आज दोपहर में ही पढ़ लिया था तरही मुशायरे के नज़र, बढ़िया लगी..अभी आपके ब्लॉग पर नज़र गई तो दुबारा पढ़ना भी सुखद था....सुंदर एहसास लिए बढ़िया ग़ज़ल..बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteग़ज़ल तो गुरु कुल में सुबह ही पढ़ ली थी मगर आज आपके ब्लॉग पर इसे पढ़ने से ज्यादा आपको सुन रोमांचित और आश्चर्यचकित हूँ ! इतनी बड़ी बात कैसे छुपाई हमसे ??? आवाज़ में अजीब सी कशिश है, सादगी है , एक अलग आकर्षण है ... कमाल कर दिया ... उधर से आये हो और आखिरी शे,र ने फिर कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया मुझे ....
ReplyDeleteढेरो बधाईयाँ बहन जी को पहले तो उनके इस जन्म विशेष दिन पर ... अल्लाह मियाँ उनको इतनी खुशियों से लाद दे कोई ख़ुशी बचे ही ना पाने के लिए ...
अर्श
गौतम भाई.... आज की पोस्ट बहुत उम्दा लगी.....
ReplyDeleteyeh mubaarkbaad or fir ghzl kaa andaaz maashaa allah mzaa aa gyaa . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteकंचन जी को शुभकामनाएं तो दूँगा ही..मगर एक अनमोल शायर की लिखी एक खूबसूरत ग़ज़ल के साथ जन्मदिन मनाने की किस्मत कितनो को नसीब होती है..फिर तरही का लुत्फ़े-बरसात भी..लम्बे वक्त के बाद यहाँ पर ग़ज़ल से तार्रुफ करना अच्छा लगा..खासकर यह शेर बहुत सामयिक लगा
ReplyDeleteभटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
तो यह शेर इश्क के पारंपरिक अदाज को और उँचाई देता है
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
वैसे इसे आपकी सबसे बेहतरीन ग़ज़ल तो नही कहूँगा...मगर मौसम के लिहाज से बहुत अनुकूल लगी..और उजली बारिशें...क्या बात है..हाँ पहले शे’र मे ’लें बलाएँ हैं’ कहीं पर खटकता है...
कंचन जी को और आपके/आपकी अनाम दोस्त को जनमदिन की मुबारकबाद! ;-)
Achha laga aapko "Bikhare Sitare"pe dekh ke...antim do kadiyan maine edit karne se pahle aapke liye waise hi kuchh din chhod rakhin thin...unhen waise hi chhodna khatre se khali nahi tha...gar aap mere doosre blog,"simte lamhen"pe comment karen to mai aapko jawab me e-mail dwara unhen post kar sakti hun!Warna ye kadiyan be sir pair kee mahsoos hongi...inmese kayi tathy delete kar diye hain.
ReplyDeleteभटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
क्या बात है, गौतम जी. सुन्दर गज़ल है. कंचन जी को मेरी भी बधाई. आपकी आवाज़ में गज़ल सुनना आनन्दित कर गया.
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
ReplyDeleteहक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं...
दवा हकीम से ली ही क्यूँ ...:)
खूबसूरत ग़ज़ल ...
कंचन जी को शुभकामनायें ...!
मैं ग़ज़ल पढने दोबारा आया.... जब भी किसी चीज़ को सीखने की ललक हो... तो अपने से बेहतर को ढूंढना चाहिए.... आप ग़ज़ल के क़ायदे और उसूल को फौलो करते हुए ...बहुत खूबसूरती से एहसास ले आते हैं.... मुझे लगता है.... मेरे सीखने की ललक को .... बेहतर मिल गया है.... क्या आप मेरी मदद करेंगे... ?
ReplyDeleteकंचन जी को जन्मदिन की शुभकामनांए।
ReplyDeleteमजेदार गज़ल, मधुर आवाज, धन्यवाद.
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
ReplyDeleteफ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं.
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
,,,बेहतरीन !
कंचन को जन्म दिन की शुभकामनाएं!
:)
ReplyDeleteअभी सिर्फ स्माइल..
यूं नहीं के वक़्त नहीं है कमेन्ट देने का..खूब है जी..
पर वो मूड नहीं है...जिसमें कमेन्ट दिया करते हैं हम...
गौतम साहब.....
ReplyDeleteपूरे फार्म में हैं दिखे इस बार आप.....हमारी इल्तिजा मान ली शुक्रिया...... वाकई एक अरसा हो गया था आपकी ग़ज़ल पढ़े हुए.......!
उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं
बटोही रास्ते खो कर भी लें बलाएँ हैं
.....आपकी बलाएँ लेने को जी चाह रहा है फ़िलहाल.....!
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
कहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
......कुछ पुराने दिन याद आ गए जैसे इस शेर को पढ़ के.....बेहतरीन.!
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
.......क्या एहसास हैं और क्या उनकी अदायगी....न्योछावर हो गए हुज़ूर हम आप par !
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
मुहब्बत का क्या नया अंदाज़ है......! पोर्टेट सी खिंच गयी सामने...!
उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
हक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं
यह शेर हमें उधार दे दें......!
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
तरही को क्या फलक बख्शा है.......ज़मीं के कराहने का बिलकुल अद्भुत विम्ब.....!
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
अब इसके बाद तारीफ़ में लिखने को कुछ नहीं रह जाता......!
"उन्हीं के नाम का अब आसरा है एक मेरा
ReplyDeleteहक़ीम ने जो दीं, सब बेअसर दवाएँ हैं"
"कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं"
बड़े दिनों बाद दर्शन मिल !!!!! हमेशा की तरह हर एक शेर बेमिसाल
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
ReplyDeleteसुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
.. Beautiful x 4 !!
बहुत खूब ! बस ऑडियो में आवाज इतनी धीमी है कि फुल वोल्यूम में भी सुने नहीं दे रही.
ReplyDeleteउठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
ReplyDeleteजुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
बेहतरीन !
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
ReplyDeleteसुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
..........
वाह क्या बात है !
मजबूरियाँ क्या ना करायें ? अब क्या करे जब किसी अज़ीज़ के साथ किसी और का जन्मदिन पड़ जाये तो कैसे उसे इग्नोर करें ? :)
ReplyDeleteफिर भी भाई हमें शुभकामनाएं मिलने के योग बने थे तो मिल गईं ढेरों ढेर शुभकामनाएं...!
आप सबका धन्यवाद...! जिन्होने यहाँ से दुआएं भेजीं, हम अपना सामान बटोर के लिये जा रहे हैं।
............:-)
ReplyDeleteभटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शहर की हवाएँ हैं....
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है गौतम जी..और ये शेर
लाजवाब....गहन चिन्तन का आईना बन गया.
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
ReplyDeleteकहो तो इसमें भला क्या मेरी ख़ताएँ हैं
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
और...
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं . . .
बहुत ही खूबसूरत और दिलचस्प अश`आर कहे हैं जनाब
ढेरों दुआएं
शेर पढ़ कर सिर्फ मुस्कुराने के अलावा कुछः सूझ नहीं रहा... :-)
ReplyDeleteभटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
Ab to ghaton ko barasana hee pada hoga.
ऊपर लिखे इतने कमेन्ट को देखा कर लगता है हमने गज़ल की समझ कब आएगी. कुछ लोगों ने बहुत बेहतर तरीके से इसका आनंद लिया है. जैसे सिंह साहब, अपूर्व और संजीव जी ने...
ReplyDeleteपढ़ लिया, सुन नहीं पाया इसलिए अभी तारीफ़ पूरी नहीं कर रहा क्योंकि अभी हक़दार नहीं हूँ इसका।
ReplyDeleteलौट कर, सुन कर आगे बात होगी।
maza aa gaya..imandari se bata raha hun :)
ReplyDeleteपूरी ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है, बधाई स्वीकारें ...पर आवाज तो मुझे भी नहीं सुनाई दे रही.
ReplyDeleteऔर हाँ, कंचन जी को शुभकामनाएँ..
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं
वाह...वाह...वाह...
लाजवाब...अद्वितीय !!!
कमजोर नेट कनेक्शन ने आपकी बेसुरी आवाज नहीं सुनने दी है अभी..अफ़सोस है......
एक अफ़सोस और कि beemaaree में नेट से दूर rahne के karan kanchan को wish नहीं कर paayi...
उधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
ReplyDeleteसुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
सिखाये है वो हमें तौर कुछ मुहब्बत के
शजर के शाख से लिपटी ये जो लताएँ हैं
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
गुनाहगार हुईं शह्र की हवाएँ हैं
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
जुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
हर एक शेर सुंदर एहसास लिए
बेहतरीन !
भटकती फिरती है पीढ़ी जुलूसों-नारों में
ReplyDeleteगुनाहगार हुईं शहर की हवाएँ हैं....
बहुत ख़ूब !
गौतम ,देर से आई हूं सब कुछ तो लिखा जा चुका शायद
नेक ख़्वाहिशात क़ुबूल कर लो
बेहद उमदा गज़ल। कंचन को फिर से ढेरों आशीर्वाद। जल्दी मे हूँ। शुभकामनायें दोनो भाई बहन का प्यार यूँ ही बना रहे।
ReplyDelete'कराहती है ज़मीं उजली बारिशों के लिये
ReplyDeleteफ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं'
- सुन्दर.
bada meetha sa kah gaye
ReplyDeleteउधर से आये हो, कुछ जिक्र उनका भी तो कहो
सुना है, उनके ही दम से वहाँ फ़िज़ाएँ हैं
Kanchan ke janmdin ka der se pata chala ... Kanchan janamdin par meri hardik shubhkamnaa
tum isi tarah aage badti raho yahi dua hai
उठी थी हूक कोई, उठ के इक ग़ज़ल जो बनी
ReplyDeleteजुनूँ है कुछ मेरा तो उनकी कुछ अदाएँ हैं
..वाह!
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