[ कथादेश के जून 2018 के अंक में प्रकाशित "फ़ौजी की डायरी" का पंद्रहवाँ पन्ना ]
इन्द्रजीत...लांस
नायक इन्द्रजीत सिंह नहीं रहा | बटालियन के समस्त जवानों को यहाँ इस ढ़ाई साल की
तयशुदा तैनाती के बाद वापस सकुशल ले जाने की माँ भवानी से की हुई मेरी प्रार्थना
अनसुनी रह गयी | पाँचवा दिन है...पूरी बटालियन के सोलह ऑफिसरों और ग्यारह सौ
जवानों के हलक से निवाला नहीं उतर रहा | दुश्मन से मुठभेड़ के दौरान हुई किसी सैनिक
की मौत फिर भी कहीं न कहीं से मन के किसी कोने द्वारा स्वीकार्य हो जाती है बीतते
वक़्त के साथ | लेकिन मौसम की मार या मुश्किल ज़मीनी बनावट की वज़ह से मेडिकल सहायता
समय पर ना पहुँचने के बदौलत हुई मौत उम्र भर टीस देती है |
रात
का दूसरा पहर था...दो से कुछ ऊपर ही बज रहा होगा, जब वायरलेस सेट पर संदेशा आया था
ऑपरेटर का | कुछ तो उसकी आवाज़ में व्याप्त चिंता और कुछ बाहर के मौसम का विकराल
रूप...दोनों का खौफ़नाक संगम मन में एक अनिष्ट की उत्पत्ति का निश्चित माहौल तय कर
रहा था | छुट्टी से वापस आने वाले तेरह जवानों की टोली नीचे बेस से शाम के सात बजे
चल चुकी थी इस जानिब | सात घंटे की चढ़ाई के बाद रात के इस पहर तो इस टोली को अब तक
क़ायदे से यहाँ ऊपर पहुँच जाना चाहिए था | बर्फ़ीले पहाड़ों पर हमेशा सूरज ढल जाने के
बाद की यात्रा ही सुरक्षित रहती है कि एवलांच आने का ख़तरा बहुत ही कम रहता है रात
में | अमूमन इस इलाक़े के मौसम का पूर्वानुमान हमें निन्यानबे दशमलव नौ प्रतिशत की
विशुद्धता के साथ हासिल होता है हर सुबह सीधे दिल्ली से | लेकिन ये रात शायद उसी
शून्य दशमलव एक प्रतिशत की श्रेणी में शामिल थी | छुट्टी से वापस आयी टोली के लिए
ऊपर बटालियन की ओर चढ़ने की यात्रा शुरू करने की अनुमति जब माँगी गयी थी बेस से,
मौसम बिलकुल खुला हुआ था | आधा चाँद आ चुका था अपनी पूरी चमक के साथ ढेर-ढेर सारे
तारों को संग लिए | एक आम सी रात थी...जो अपने समापन पर टीस का ना भुलाने वाला
सैलाब लाने वाली थी, किसे पता था |जवानों की टोली की तरफ़ से चढ़ाई के दो घंटे बाद
ही तो संदेशा आया था कि इन्द्रजीत की छाती में हल्का दर्द है | टोली को तुरत ही
वापस नीचे जाने का मेरा हुक्म भी मिल गया था | लेकिन इन्द्रजीत ने ख़ुद ही ज़िद की
कि कुछ नहीं है...चलते हैं ऊपर | बीच रस्ते में छाती के दर्द ने अपना विकराल रूप
धर लिया | प्राथमिक चिकित्सा ने उखड़ी साँसों को तनिक सामान्य तो किया लेकिन पौ
फटने से चंद लम्हे पहले लांस नायक इन्द्रजीत ने हमेशा के लिए अपनी आँखें मूंद ली |
मुस्तैद हेलिकॉप्टर पायलट तैयार बैठे थे इन्द्रजीत को किसी भी पल उठा कर हॉस्पिटल
तक ले जाने के लिए | लेकिन मौसम की बेरहम मार ने उन्हें मौक़ा ही नहीं दिया |
विज्ञान और आधुनिक तकनीक के इस अग्रणी दौर में भी हम अपने मुल्क में ऐसे
हेलिकॉप्टर नहीं ला पाए हैं, जो इन ख़राब मौसमों में भी सुरक्षित उड़ान भर सके |
सुबह
के तीन बज रहे होंगे शायद, जब बेचैनी ने आख़िरश उस बर्फ़ीली आँधी में भी
नीचे की तरफ़ दौड़ने को विवश कर दिया था...बटालियन के सूबेदार मेजर और अन्य ऑफिसरों
के लाख रोकने के बावजूद | किसी तरह हज़ार...दस हज़ार साल बाद मध्य रास्ते में अपने
जवानों की टोली के पास गिरता-पड़ता पहुँचा तो इन्द्रजीत जा चुका था हमें छोड़ कर |
जाने
कितनी ही यादें थीं इन्द्रजीत के साथ जुडी हुई | पिथौरागढ़ वाले टेन्योर से पहले वो
मेरे साथ ही तो था तीन साल यहीं कश्मीर में...उधर नीचे के उन जंगलों में | कितनी
गश्तें, कितने ही एम्बुश और ऑपरेशन में साथ रहा वो | हरदम मुस्कुराता हुआ...और
हरियाणा की रागिनी सुनाता हुआ जब-तब | पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि उसने
ऊपर की चढ़ाई के दौरान ज़मीन से उठा कर गीला बर्फ़ खा लिया था, जो उसके सीने में बैठ
गया जाकर और वही घातक साबित हुआ | इस ऊँचे पहाड़ पर तैनाती से पहले की उस चार हफ़्ते
की ट्रेनिंग के दौरान करोड़ों बार बताया गया था कि थकान के दौरान प्यास बुझाने के
लिए कभी भी बर्फ़ नहीं निगलना है | जब से यह जानकारी मिली है, दुःख और टीस की
तरंगों में कहीं-न-कहीं से एक आक्रोश की लहर भी मिल गयी है |
एक
सैनिक होकर आप लम्हे भर को लापरवाह नहीं हो सकते...अ सोल्जर जस्ट कांट अफोर्ड
टू बी केयरलेस...और ख़ास कर प्रशिक्षण के दौरान बतायी हुई बातों के बरखिलाफ़ की
लापरवाही तो अक्सर ही जानेलवा साबित हुई है | एक छोटी सी ग़लती ने ना सिर्फ़ एक जवान
ज़िन्दगी को असमय समाप्त कर दिया...मुल्क से एक क़ाबिल सैनिक को भी छीन लिया | पीछे
छूट गए हैं उसकी पत्नी, उसकी चार साल की बेटी, उसके बूढ़े माँ-बाप और हम सब
संगी-साथी |
एक
कमान्डिंग ऑफिसर की ज़िन्दगी का सबसे दुश्वार लम्हा होता है दिवंगत सैनिक के घर में
पिता, माँ या पत्नी को सूचित करना | हुक-हुक करते सीने और थरथराते हाथों से
इन्द्रजीत के पिता को फ़ोन पर जाने कैसे तो कैसे
बता पाया ये बात | उधर से उठी उनकी चित्कार ने मानो मुझे ताउम्र के लिए
बहरा बना दिया है | दुनिया में काश किसी पिता को अपने जवान बेटे की मौत की ख़बर ना
सुननी पड़े कभी...और काश विश्व भर की सेनाओं के किसी कमान्डिंग ऑफिसर को अपने बटालियन
के सैनिक की मौत की ख़बर नहीं देनी पड़े उसके घर में !
इतनी
सी प्रार्थना है बस ! बहुत बड़ी है क्या ?
आज
शब्द साथ नहीं दे रहे, डियर डायरी | जाने कैसे-कैसे अनर्गल से आलाप उठ रहे हैं
सीने की तलहट्टियों में से | बाबुषा कोहली की एक कविता का अंश इन दहकते आलापों पर
भीगी पट्टियां रखता है देर रात गए इस सुलगते बर्फ़ीले पहाड़ पर | सुनो डायरी मेरी :-
“आसमान कहता है कि किसी को इतने रतजगे न
दो
कि पक्की नींद का पता ढूंढे
आसमान के पास आँखें हैं पर हाथ नहीं
ज़ख्मी गर्दन पर तमगे टाँगे गए
उसकी नींद की मिट्टी पर उगा दिए गए गुलाब
के फूल
आख़िर शान्ति और सन्नाटे में कोई तो फर्क़
होता है ना
दरअसल मेरे दोस्त !
सन्नाटे न तोड़े गए तो जम्हाई आती है
कि बत्तीस साल बहुत से सवालों की उम्र
होती है...”
...इन्द्रजीत
इस साल जून में बत्तीस का होता !
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
ये डायरी भी कितना समेट लेती है?
ReplyDeleteमर्म को भेदता वाकया ।
ReplyDeleteदर्द भरी दास्तां।
ReplyDeleteलापरवाही जानलेवा होती है हमेशा और
लाचारी उससे भी ज्यादा खतरनाक।
हेलीकॉप्टर भी अपडेट नहीं है हमारी सेनाओं के पास तो क्या तरक्की हो रही है भारत की।
बेहद मार्मिक
ReplyDeleteबेहद मार्मिक
ReplyDeletedil bhawano se bhar gaya, bahut marmik.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयह डायरी नहीं,दस्तावेज है। अद्भुत एहसासों को समेटे।
ReplyDeleteMan ko jhanjhod dene wali daastan....
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasand aayen- Albert Einstein Quotes , Love Quotes for Him
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