गुज़र जाएगी शाम तकरार में
चलो ! चल के बैठो भी अब कार में
अरे ! फ़ब रही है ये साड़ी बहुत
खफ़ा आईने पर हो बेकार में
तुम्हें देखकर चाँद छुप क्या गया
फ़साना बनेगा कल अख़बार में
न परदा ही सरका, न खिड़की खुली
ठनी थी गली और दीवार में
अजब हैंग-ओवर है सूरज पे आज
ये बैठा था कल चाँदनी-बार में
दिनों बाद मिस-कॉल तेरा मिला
तो भीगा हूँ सावन की बौछार में
मिले चंद फोटो कपिल देव के
कि बचपन निकल आया सेलार में
खिली धूप में ज़ुल्फ़ खोले है तू
कि ज्यूँ मिक्स 'तोड़ी' हो 'मल्हार' में
भला-सा था 'गौतम', था शायर ज़हीन
कहे अंट-शंट अब वो अश'आर में
[ पाल ले इक रोग नादाँ के पन्नों से ]
मस्त है ये अंटशंट भी गौतम जी !!!
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आधुनिक काल की मीराबाई को नमन करती ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
क्या बार सरकार ...
ReplyDeleteमज़ा आ गाय इस ग़ज़ल का ...
पढ़ा है पहले भी। दुबारा पढ़़कर भी उतना ही आनंद आया। शानदार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब !!
ReplyDeleteप्रिय गौतम -- मन के उन्मुक्तअनुराग के रंग बिखेरती रचना बहुत खूब है | प्यारी सी रचना के लिए बधाई और शुभकामना |
ReplyDeleteलाजवाब अंट-संट...
ReplyDeleteवाह!!!
आपकी ग़ज़लें पढ़कर मैं हैंग-ओवर हो जाता हूँ । बहुत ख़ूब है ये तो !!!
ReplyDeleteआपकी आधुनिक शब्दों की ग़ज़ल पढ़कर हमेशा आनंदित हो उठता हूँ, बहुत दुआएं सर !!💐👌
ReplyDelete