छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं
आस्माँ ! तेरे सितारों के मुक़ाबिल हुआ
मैं
नाम बेशक न लिया उसने कभी खुल के मेरा
चंद ग़ज़लों में मगर उसकी तो शामिल हुआ मैं
हाल मौसम का,
नई फिल्म या यूँ ही कुछ भी
कह गया सब,
न कहा दिल की, यूँ बुज़दिल हुआ मैं
पर्स में वो तो लिए फिरता है तस्वीर मेरी
और सरगोशियों में शह्र की दाख़िल हुआ मैं
ऊँगलियाँ उठने लगीं हाय मेरी ज़ानिब अब
उसको पाने की तलब में किसी
क़ाबिल हुआ मैं
उसने जो पूछ लिया कल कि "कहो, कैसे हो"
बाद मुद्दत के ज़रा ख़ुद को ही हासिल हुआ
मैं
ज़िंदगी बह्र से खारिज हुई बिन उसके, और
काफ़िये ढूँढता मिसरा कोई मुश्किल हुआ मैं
[ पाल ले इक रोग नादाँ के पन्नों से ]
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन उस्ताद बिस्मिला खां और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteलाजवाब सर ... हर शेर पे तालियाँ ही निकल रही हैं ...
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteआदरणीय गौतम ------आपकी सुंदर गजल मन छू कर निकल गयी |-- वाह !!!वाह !!और सिर्फ वाह !!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteवाह! हज़ार बार सुनी जा सकने वाली गज़ल.सादर
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteहमे आपके रूप मे एक और साथी मिल गया जो हमे यादों के सुनहरे दौर मे ले जाये कभी ख्वाहिसों की दुनियाँ के कई रंग दिखा जाये ।
सुंदर गजल
लाज़वाब, शानदार गज़ल।वाहह
ReplyDelete😆
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