बड़ी देर तक ठिठका रहा था वो आधा से कुछ ज्यादा चाँद अपनी ठुड्ढी उठाए दूर उस पार पहाड़ी पर बने छोटे से बंकर की छत पर| अज़ब-गज़ब सी रात थी...सुबह से लेकर देर शाम तक लरज़ते बादलों की टोलियाँ अचानक से लापता हो गईं रात के जवान होते ही| उस आधे से कुछ ज्यादा वाले चाँद का ही हुक्म था ऐसा या फिर दिन भर लदे फदे बादल थक गए थे आसमान की तानाशाही से...जो भी था, सब मिल-जुल कर एक विचित्र सा प्रतिरोध पैदा कर रहे थे| ....प्रतिरोध? हाँ, प्रतिरोध ही तो कि दिन के उजाले में उस पार पहाड़ी पर बना यही बंकर सख़्त नजरों से घूरता रहता है इस ज़ानिब राइफल की नली सामने किए हुये और रात के अंधेरे में अब उसी के छत से कमबख़्त चाँद घूर रहा था| न बस घूर रहा था...एक किसी गोल चेहरे की बेतरह याद भी दिला रहा था बदमाश...
सोचा था
हाँ, सोचा तो था
बताऊंगा उसको
आयेगा जब फोन
कि
उठी थी हूक-सी इक याद
उस पार वाले बंकर की छत पर
ठुड्ढी उठाए चाँद को
ठिठका देख कर
गश्त की थकान लेकिन
तपते तलवों से उठकर
ज़ुबान तक आ गई थी
और
कह पाया कुछ भी तो नहीं...
सोच रहा हूँ
अब के जो दिखा बदमाश
यूँ ही घूरता हुआ
उठा लाऊँगा उस पार से
और रख लूँगा
तपते तलवों पर गर्म स्लीपिंग बैग के भीतर
पूछूंगा फिर उसको फोन पर
कि
इस हूक-सी याद का उठना
कुफ़्र तो नहीं,
जब जा बसा हो वो मुआ चाँद
दुश्मनों के ख़ेमे में...???
पता नहीं, उस पार वाले बंकर के नुमाइंदों को किसी की याद आ रही होगी कि नहीं चाँद को यूँ ठिठका देखकर !!! दिलचस्प होगा ये जानना...
सोचा था
हाँ, सोचा तो था
बताऊंगा उसको
आयेगा जब फोन
कि
उठी थी हूक-सी इक याद
उस पार वाले बंकर की छत पर
ठुड्ढी उठाए चाँद को
ठिठका देख कर
गश्त की थकान लेकिन
तपते तलवों से उठकर
ज़ुबान तक आ गई थी
और
कह पाया कुछ भी तो नहीं...
सोच रहा हूँ
अब के जो दिखा बदमाश
यूँ ही घूरता हुआ
उठा लाऊँगा उस पार से
और रख लूँगा
तपते तलवों पर गर्म स्लीपिंग बैग के भीतर
पूछूंगा फिर उसको फोन पर
कि
इस हूक-सी याद का उठना
कुफ़्र तो नहीं,
जब जा बसा हो वो मुआ चाँद
दुश्मनों के ख़ेमे में...???
पता नहीं, उस पार वाले बंकर के नुमाइंदों को किसी की याद आ रही होगी कि नहीं चाँद को यूँ ठिठका देखकर !!! दिलचस्प होगा ये जानना...
इक हुक सी जो उठी है इधर, कुछ तो उधर भी होता होगा.
ReplyDeleteचाँद न सही इस रात का, कुछ तो असर होता होगा.
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteइस हूक-सी याद का उठना
ReplyDeleteकुफ़्र तो नहीं,
क्या बात...
पूछूंगा(पू......छुंगा ) फिर उसको फोन पर.......पू .......छुंगा
ReplyDeleteकि
इस हूक-सी याद का उठना
कुफ़्र तो नहीं,
जब जा बसा हो वो मुआ चाँद
दुश्मनों के ख़ेमे में...???
बेहतरीन प्रस्तुति .
गश्त की थकान लेकिन
ReplyDeleteतपते तलवों से उठकर
ज़ुबान तक आ गई थी
और
कह पाया कुछ भी तो नहीं... आँखों में जाने कितने लम्हें लिए एक सैनिक बस सोचता जाता है !
पूछूंगा फिर उसको फोन पर
ReplyDeleteकि
इस हूक-सी याद का उठना
कुफ़्र तो नहीं,
जब जा बसा हो वो मुआ चाँद
दुश्मनों के ख़ेमे में...???
उफ़ ………मोहब्बत !!!!!!!!!
एक सैनिक की भावनाओं को जीवंत कर दिया है ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteye 'Kufr' IBADAT hai...
ReplyDeleteसीमा-रेखा चाँद का बिछावन है... वह इस बिछावन पर इस-उस करवट होता रहता है :)
ReplyDeleteपूछूंगा फिर उसको फोन पर
ReplyDeleteकि
इस हूक-सी याद का उठना
कुफ़्र तो नहीं,
जब जा बसा हो वो मुआ चाँद
दुश्मनों के ख़ेमे में...???
पता नहीं, उस पार वाले बंकर के नुमाइंदों को किसी की याद आ रही होगी कि नहीं चाँद को यूँ ठिठका देखकर !!!
bahut khoob दिलचस्प होगा ये जानना..
बहुत खूबसूरत, सामने वाला भी क्या इतने प्यार से सोच पाता होगा?
ReplyDelete"पता नहीं, उस पार वाले बंकर के नुमाइंदों को किसी की याद आ रही होगी कि नहीं चाँद को यूँ ठिठका देखकर !!! दिलचस्प होगा ये जानना.."
ReplyDeleteमैं पूछ कर बताऊँ क्या...??? तुम्हारी राज़दार, तुम्हारी खूफिया भी बन सकती है वैसे.... जब चाहे आज़मा लो...
ये सीमायें इंसान की बनायी हैं ,चाँद बेचारा क्या जाने.उसपार वाले की भी अपनी मजबूरी होगी.
ReplyDeleteज़बरदस्त...आपकी लेखनी में ताजगी है और हिंदी उर्दू का इतना बेहतरीन सम्मिलन बहुत कमाल का है!!
ReplyDeleteबहुत खूब!सुन्दर कविता . उस पार वाले बंकर मे भी यही चल रहा होगा. शर्तिया.
ReplyDeleteगश्त कर रहे है या चाँद देख रहे है...:-\
ReplyDeleteउस पार वाले बंकर मे भी यही चल रहा होगा:)
चांद को देख कर हमें क्यूं याद उनकी आती है ।
ReplyDeleteदुश्मन की छाती भी चांद को देख जुडा जाती है ।
युध्दरत सैनिक के भी ऐसे कोमल भाव ।
आखिर उस पार भी इन्सान ही तो हैं ।
यह सच है कि संवेदना कभी भी, कहीं भी अपने पैर पसारती है!
ReplyDeleteबेहतरीन है। देर से आते हो भईया, पर....कह तो जाते ही हो..
वाह....
ReplyDeleteइससे बेहतर क्या?
अनु
Gautam saab... behtareen... Tasavvurat gazab hain huzoor :)
ReplyDeleteसबके चांद सलामत रहें।
ReplyDelete