31 July 2008

मेरे शब्द


ब्लौग की शुरूआत...पहली कोशिश...उमड़ते-उफ़नते विचारों को शब्दों में बांध लेना आसान तो नहीं होता,फिर भी कोशिश करता रहता हूँ....कुछ ऐसा ही प्रयास ये.व्याकरण,बहर,छंद,शास्त्र और उस्ताद-विशारद शायद खारिज कर दें मेरे इस प्रयास को,जो मैं इन्हें गज़ल कहने की जुर्रत करूँ...तो ये जो कुछ भी है,जैसा भी है-मेरी बात है,मेरे कहने का अन्दाज है।


आइनों पे जमी है काई,लिख
झूठे सपनों की सच्चाई लिख

जलसे में तो सब खुश थे वैसे
फिर रोयी क्यों शहनाई,लिख

कभी रेत और कभी पानी पे
जो भी लिखे है पूरवाई,लिख

तेरी यादों में धुली-धुली-सी
अबके भिगी है तन्हाई,लिख

तारे शबनम के मोती फेंके
हुई चांद की मुँहदिखाई,लिख

क्या कहा रात ने जाते-जाते
क्यों सुबह खड़ी है शरमाई,लिख

कदम-कदम पे मुझको टोके है
कौन सांवली-सी परछाई,लिख

रुह में उतरे और बात करे
अब ऐसी भी इक रुबाई
लिख

.....और इसी सिलसिले में एक ये भी कि:-


जबसे तुमने मुझको छुआ है
रात चांदनी दिन गेरुआ है

इक बीज पड़ा है इश्क का जबसे
उगा नसों में मानो महुआ है

तुम क्या गये कि ये मन अपना
अहसासों का खाली बटुआ है

अब टूटा है तो दर्द भी होगा
ये दिल तो शीशम न सखुआ है

तुम्हारे चेहरे की रंगत से
मेरा मौसम-मौसम फगुआ है

फेरो ना यूं अब नजरें हमसे
कि बहने लगी फिर से पछुआ है

....अपने अन्य प्रयासों के साथ जल्द ही लौटता हूँ...आप सब की हौसला अफ़जाई हिम्मत देगी अपनी इस ब्लौग-यात्रा को आगे बढ़ाने में...शुक्रिया~~~




1 comment:

  1. deer,
    आइनों पे जमी है काई,लिख
    झूठे सपनों की सच्चाई लिख

    जलसे में तो सब खुश थे वैसे
    फिर रोयी क्यों शहनाई,लिख

    कभी रेत और कभी पानी पे
    जो भी लिखे है पूरवाई,लिख

    तेरी यादों में धुली-धुली-सी
    अबके भिगी है तन्हाई,लिख

    bahut achha likha hai
    shahid samar
    http://shahidkidunia.blogspot.com/

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