तस्वीरें देखते हुये सोया था तो ख्वाब दस्तक देते रहे नींद में, नींद भर। जलसा-सा कुछ था जैसे। बड़ा-सा आँगन...एक पतली-सी गली। गली खास थी। ख्वाब का सबसे खास हिस्सा उस गली का दिखना था। ख्वाबों का हिसाब रखना यूँ तो आदत में शुमार नहीं, फिर भी ये याद रखना कोई बड़ी बात नहीं थी कि जिंदगी का ये बस तीसरा ही ख्वाब तो था। इतनी फैली-सी, लंबी-सी जिंदगी और ख्वाब बस तीन...? ख्वाब में गली और आँगन के अलावा एक चाँद था और थी एक चमकती-सी धूप। चाँद उस गली होकर तनिक सकुचाते-सहमते हुये आया था धूप के आँगन में। धूप खुद को रोकते-रोकते भी खिलखिला कर हँस उठी थी। जलसा ठिठक गया था पल भर को धूप की खिलखिलाहट पर और चाँद...? चाँद तो खुद ही जलसा बन गया था उस खिलखिलाती धूप को देखकर। धूप ने एक बार फिर से चाँद के दोनों गालों को पकड़ हिला दिया। बहती हवा नज़्म बन कर फैल गयी फ़िजा में और नींद भर चला ख्वाब हड़बड़ाकर जग उठा। बगल में पड़ा हुआ मोबाइल एक अनजाने से नंबर को फ्लैश करता हुआ बजे जा रहा था। मिचमिचायी खुली आँखों के सामने न चाँद था, न ही वो चमकीली धूप। नज़्म बनी हुई हवा जरूर तैर रही थी मोबाइल के रिंग-टोन के साथ। टेबल पर लुढ़की हुई कलाई-घड़ी पर नजर पड़ी तो वो तीन बजा रही थी। कौन कर सकता है सुबह के तीन बजे यूँ फोन...और अचानक से याद आया कि घड़ी तो जाने कब से बंद पड़ी हुई है। दूसरे ख्वाब वाली बीती सदी की गर्मी की एक दोपहर से बंद पड़ी थी घड़ी।
मोबाइल पर एक बहुत ही दिलकश-सी अपरिचित आवाज थी। नींद से भरी और ख्वाब से भर्राई आवाज को भरसक सहेजता हुआ...
"हैलो...!"
"हैलो, आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया?"
"नहीं, आप कौन बोल रही रही हैं?"
"यूं ही हूँ कोई। नाम क्या कीजियेगा जानकर।"
"........."
"लेम्बरेटा...ठिठकी शाम, आपकी कहानी अभी-अभी पढ़ा है हंस में। आपने ही लिखी है ना?"
"जी, मैंने ही लिखी है"
"आपने अपने पाठकों के साथ अन्याय किया है।"
"???????"
"कहानी अधुरी छोड़कर"
"लेकिन कहानी तो मुकम्मल है।"
"मुझे सच-सच बता दीजिये प्लीज?"
"क्या बताऊँ????"
"आखिर में वो एसएमएस आया कि नहीं?"
"मैम, वो कहानी पूरी तरह काल्पनिक है।"
"बताइये ना प्लीज, वो शाम अब भी ठिठकी हुई है?"
"हा! हा!! मैं इसे अपनी लेखकीय सफलता मानता हूँ कि आपको ये सच जैसा कुछ लगा।"
"सब बड़बोलापन है ये आप लेखकों का।"
"ओह, कम आन मैम! वो सब एक कहानी है बस।"
"ओके बाय...!"
"अरे, अपना नाम तो बता दीजिये!!!"
...फोन कट चुका था। सुबह के सात बजने वाले थे। नींद की खुमारी अब भी आँखों में विराजमान थी। कमरे में तैरती नज़्म अब भी अपनी उपस्थिति का अहसास दिला रही थी और चाँद विकल हो रहा था धूप के आँगन में वापस जाने को। टेबल पर लुढकी हुई कलाई-घड़ी अब भी तीन ही बजा रही थी मगर। वो दूसरा ख्वाब था। पिछली सदी की वो गर्म-सी दोपहर थी कोई, जब चाँद उतरा था फिर से धूप के आँगन में। आँगन में उतरने से चंद लम्हे पहले ईश्वर से गुज़ारिश की थी उसने वक्त को आज थोड़ी देर रोक लेने के लिये। दोपहर बीत जाने के बाद...धुंधलायी शाम के आने का एलान हो चुकने के बाद धूप ने ही इशारा किया था कि चाँद की घड़ी अब भी दोपहर के तीन ही बजा रही है। ईश्वर के उस मजाक पर चाँद सदियों बाद तक मुस्कुराता रहा। ...और नज़्म अचानक से फिर मचल उठी। मोबाइल पर वही नंबर फिर से फ्लैश कर रहा था।
"हैलोssss...!!!"
"वो शाम अब भी ठिठकी हुई है क्या सच में?"
"मैम, वो बस एक कहानी है...यकीन मानें।"
"आप सिगरेट पीते हैं?"
"हाँ, पीता हूँ।"
"मैं जानती थी। एसएमएस आया कि नहीं बाद में?"
"हद हो गयी ये तो..."
"ओके, बाय!"
"हैलो...हैलो..."
...फोन कट चुका था। नींद अब पूरी तरह उड़ चुकी थी। टेबल पर लुढ़की हुई कलाई-घड़ी बदस्तुर तीन बजाये जा रही थी। नज़्म बनी हुई हवा मगर अब भी टंगी हुई थी कमरे में। और पहला ख्वाब....? वो कहानी फिर कभी!
चाँद और धूप साथ-साथ...अजीब मगर मजे की बात...:)
ReplyDeleteये शब्द चित्र तो बड़े शायराना हैं...एक शायर की कलम से जो निकले हैं...
ReplyDeleteअब ये बताइए...ये फोन-कॉल्स हकीकत हैं या फिर किसी ख़्वाब का हिस्सा??
अगर हकीकत हैं तब तो लुत्फ़ आ गया....हम अकेले नहीं हैं ये सब झेलनेवाले....
हर कहानीकार के साथ ये सवाल शायद हमसाया की तरह चलते हैं...जब पहली कहानी लिखी थी..तो दूसरी कहानी सिर्फ यह दिखाने को लिखनी पड़ी...कि पहली कहानी की नायिका बिलकुल काल्पनिक है.
BTW वो एस.एम.एस आया या नहीं :)
चलिए इसी बहाने "लेम्बरेटा, नन्हीं परी और एक ठिठकी शाम.." को दोबारा पढ़ लिया.. नशा अभी भी बाकी है उसमे..
ReplyDeleteमेरे पास भी मेरे एक पाठक का फोन आया था.. बोला की "दोबारा कुछ लिखा तो घर से उठवा लूँगा.."
अगली बार फोन आये तो हमारा नंबर दे देना.. कहना की असली राईटर यही है.. मैं तो असिस्टेंट हू इसका.. :)
अभी फिलहाल कुछ कह पा नही रही हूँ और बाद में कह पाऊँगी नही।
ReplyDeleteफिलहाल....! कुछ क्षण हमेशा के लिये मन में कैद हो जाते हैं, जैसे किसी लेखक के मन में कैद होगा किसी का गाल हिला देना और जब उसने लिखा तो पाठक के मन में वो दृश्य बन के कैद हो गया।
जून की किसी दोपहर के नॉस्टैलजिक मूड में पढ़ी गयी पंक्तियाँ एक कविता जो बेतकल्लुफ़ी से धूप के जले गालों को पकड़कर हिला देती है और सहसा ही बादल उमड़-घुमड़ आते हैं खुली-सी एक छोटी बालकोनी में... बसंत में ताजी हो जाती हैं धूप ने एक बार फिर से चाँद के दोनों गालों को पकड़ हिला दिया। पढ़ कर.....!!
सदका उतार रही हूँ, उस क्षण का... खुदा उसकी सर्दी, गर्मी जस की तस बनाये रखे...!!
और वो घड़ी... काश मेरे पास भी होती जो वहीं ठिठक जाती....! जहाँ मैं चाहती..! दुनिया आती, जाती.....दर्द और तनाव से बेखबर वो घड़ी मुझे वही ले के चली जाती जहाँ मैं उसे रुकने को बोल आई थी।
wonderful bro...! wonderful...!!
आपकी कहानी हंस में देखी थी... वेल्ल इतना धैर्य नहीं था की ठिठका हुआ पढूं पर एक बात है आपको पत्रिकाओं (स्त्रीलिंग ?) में देख कर ख़ुशी होती है.... अक्सर ग़ज़ल-वजल{:)} भी छपते रहते हैं... मेजरई आपके व्यक्तित्व का एक्सटेंशन है... इसलिए कहानी भी झेली जा सकती है... जो सिर्फ लिखते हैं उनसे पूछिए कितना दवाब रहता है... (उनसे में कुश और मैं हूँ) :):):)
ReplyDeleteबहरहाल, खूब लिखें, बेहतर लिखें और एस एम् एस आयें (प्रशंसक से ज्यादा प्रशंशिकाओं के) :)
हाय राम
ReplyDeleteकहानी लिखने के ऐसे दुष्परिणाम
अच्छा हुआ गुरु जी में हमें बचा लिया :)
एस.एम.एस. का तो पता नहीं मगर वो लैम्बरेटा अब कहाँ है यह जानने की उत्सुकता है,
अब आप यह मत कहियेगा की मैंने लेम्बरेटा तो बिम्ब स्वरूप रखा है पूछना तो मैं भी वही चाहता हूँ जो ....
वैसे एस. एम् एस. आया की नहीं ?
हा हा हा
फोटो तो आपने ऐसी लगा दि है की एब बार मुझे यही लगा की फोटो देख कर ही ये सारी बात लिख डाली
ReplyDeleteआपकी पूरी पोस्ट मिश्रा उला है और यह फोटो मिश्रा सानी
एक मुकम्मल शेर
देख लीजिए कर्नल साब, शायर वैसे भी मिश्रा सानी पहले लिखता है :)
पता नहीं क्यूँ कभी कभी मुझमें लगता है गौतम, . डा.अनुराग और कुश एक ही व्यक्ति के नाम हैं...तीनो एक ही हैं या फिर एक दूसरे में समाये हुए हैं...या कभी लगता है नहीं तीनो अलग हैं बिलकुल अलग...इन तीनो में से किसी एक को जब भी पढता हूँ बाकि के दोनों भी साथ साथ चले आते हैं...कभी इकठ्ठे कभी एक के बाद एक....
ReplyDeleteबहरहाल आपने अपनी एक पुरानी कहानी जिस पर हम आठ महीने पहले अपना दिल दे आये थे को बेस बना कर दुबारा वो ही जादू जगाया है...उसी दिल को वहाँ से लाकर अब इसे दे रहे हैं...
नीरज
@ वीनस...! मिसरा..!
ReplyDeleteफिर कॉल आई क्या ??
ReplyDeleteसर, वो एस.ऍम.एस आया के नहीं.......बताइए ना सर, डोंट प्रोकेसटीनेट ..ऐसा ही कुछ कहा था क्या? :-) अच्छी कहानी, अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteअब तो कभी हम भी ऐसे ही फोन कर देंगे। लेकिन उफ नम्बर ही तो नहीं है।
ReplyDeleteअच्छी कहानी, अच्छी पोस्ट.
ReplyDelete@kanchan ..aapki ye line mujhe bahut pasand aayi
ReplyDelete"khuda uski sardi, garmi jas ki tas banaye rakhe "
BTW mein bhi LT.colonel se poochhna chah rahi thi
"wo sms aaya ki nahi "
:-)
naina
शब्दों के जादूगर हैं आप, एकदम सम्मोहित सा हो जाता है पाठक।
ReplyDelete---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
धूप ने एक बार फिर से चाँद के दोनों गालों को पकड़ हिला दिया..
ReplyDeleteकमाल करते हैं आप ..हर पंक्ति काव्यात्मक रस दे ये जरुरी है क्या ? :) :) एक एक पंक्ति जैसे दिल की तह तक चलती चली जाती है..
हम तो यही दुआ करेंगे ऐसे फोन काल्स आते रहें आपको हमें इतनी खूबसूरत पोस्ट तो पढ़ने को मिला करेंगी.
Kis jahan me le gaye aap! Chand aur dhoop eksaath!
ReplyDeletePhone bhee sapna tha ya sachme aaya tha,itna to batana padega!
सच कहा जनाब ....
ReplyDeleteरात के किसी अलसाए-से पहर में
जब अचानक चाँद उतर आये ,
तो मन के गलियारों में
धुप-के-से-खिले-रहने का एहसास जाईज़ है ...
नीरज जी की बात को आगे बढ़ाना चाहता हूँ
गौतम, . डा.अनुराग और कुश .....
तीनो को पढना,,,
krishan chandar को ही पढ़े जाना लगता है
और हाँ,,,,
मैं भी कहूं .... देर रात गए तीन बजे
जनाब का फोन busy क्यों आ रहा है... !!!
बहुत अच्छी लगी कहानी| धन्यवाद|
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ReplyDeleteKahani Hans me dekh dil khush ho gaya tha mera bhi dada.. lekin left.col. ki bajay Major dekh achchha nahin laga.. shayad aapne kafi pahle bheji ho.
ReplyDeletebadhaai again.. :)
aise aur bhi phone aaye honge ye to trailer hai sirf.. :P
भाई क्या बात हैं चाँद और धूप की अठखेलियों के बारे में तो हम जागती आँखों से ना सोच सकें और आप हैं कि बतौर ख़्वाब हमें परोसे जा रहे हैं। शायर और आम आदमी का फर्क और स्पष्ट हो गया इस लेख के बाद।
ReplyDeleteवैसे मोहतरमा किस SMS की बात कर रहीं थी उस कहानी का लिंक ज़रा भेज दें तो हम बाकी की तहक़ीकात शुरु करें। :)
हे राजर्षि ! अनुपम है आपका गद्य लेखन .....गद्य में पद्य की अनुभूति .......ठीक वैसे ही जैसे धूप के आँगन में सकुचाता हुआ चाँद आकर ठिठक गया हो .....हकबकाया सा देख रहा हो ......और फिर शर्मा कर चुप हो गया हो ..आँखें नीची करके .......स्वप्न का अगला एपीसोड भी होगा क्या ?
ReplyDeleteसत्यम.......शिवम् .........सुन्दरम .......अति सुन्दरम ........घोर सुन्दरम है आपका स्वप्न. देखते रहिये ....और हमें शब्द चित्र भेजते रहिये.
हे एस एम एस जी, आ भी जाओ।
ReplyDeleteवो एस.एम.एस आया या नहीं :)
ReplyDeleteशायराना अकहानियां लिखेंगे, तो फोन तो आयेंगे ही. वैसे आप सिगरेट पीते हैं, ये उसे कैसे पता चला? :)
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ReplyDeletemaja aa gaya :)
ReplyDeleteimaginations ka pyara sa tadka!
Mujhe to poora tukda ek nazm laga...aage aur padhna chahunga
सोच तो रहा हूँ कि मैं भी पूछ लूं कि एसेमेस आया या नहीं? !
ReplyDelete@रश्मि रविजा जी,
ReplyDeleteफोन-काल्स बकायदा हकीकत हैं। हाँ, ये बात और है कि दो के बजाय तीन काल्स आये...तीसरे में मोहतरमा ने अपना परिचय दिया। :-)
@कुश,
point is noted boss!
@कंचन,
उस उतने पुराने पोस्ट को तपाक से इधर जोड़ लेने की इस अद्भुत कला पे हम निछावर।
@सागर,
गलत! मेजरई मेरे व्यक्तित्व का एक्सटेंशन नहीं, मुकम्मल व्यक्तित्व है। शेष सब कुछ, ये ग़ज़ल-वज़ल जरूर एक्सटेंशन हैं।
@वीनस,
लेम्बरेटा सचमुच में है मिल्कियत अपनी...उधर गाँव में।
@नीरज जी,
ये बहुत बड़ा काम्पलिमेंट था मेरे लिये। कुश और डा० अनुराग के साथ मुझे जोड़ना। शुक्रिया!
@Priya,
believe me, its not at all procrastination...same way as this post is not a story... :-)
@दानिश साब,
नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी...!
@मनीष जी,
कहानी का लिंक तो पोस्ट में ही दिया हुआ है।
@वंदना जी,
जिस कहानी के बाबत वो फोन-काल आया, उसका नायक सिगरेट पीता है। हा! हा!!
हकीकत का खुलासा होने के बाद यह सोच कर खुश हूँ जब आपकी प्रंशसक पढ़ेगी यह पोस्ट तो कितना खुश होगी ... साथ में दुखी भी हंस परदेसियों की तरफ से लापरवाह है जल्दी से हाथ नहीं आता...
ReplyDeleteएक्चुअल्ली:):) कहानियां इतनी अवास्तविक भी नहीं होती ...लिखने पढने वाले भी जानते हैं और ये भी की कुछ कल्पनाएँ भी जुडी होती हैं ...शायद कन्फर्म कर लेना चाहते हैं की कितनी कल्पना है कितनी हकीकत ...
ReplyDeleteधूप ने चाँद की गाल पकड़ हिला दिया ...
लाजवाब ....
सोच रही हूँ धरती के किस छोर पर यह कल्पना मुकम्मल होती होगी ...इस पर बनी पेंटिंग कैसी होगी ...!
तीसरे फोन के बारे में भी तो लिखना था !
आपने कही कहा सर, मैं ही गलत लिख गया
ReplyDeleteखूबसूरत शायराना अंदाज ।
ReplyDeleteपहले पूरा पढ़ डाला...फिर ध्यान आया कि पोस्टिंग की डेट देखूं...
ReplyDeleteदेख लिया....
काफी बातें सुननें को मिली थी आपको इस कहानी के छपने के बाद ! मैं तो इस कहानी को मुकम्मल कहुंगा! एक किशोरावस्था की वो बेहद सुक्ष्म और मुलायम प्यार को जिस तरह से आपने उसके मासुमीयत को बनाये रखा उस एक चीज पर मुझे फक्र है! इस कहानी को आपके गज़ल लेखन वाले मुकाम से नहीं तौला जान चाहिये! और इसी लिहाज़ से ये कहानी मुझे अछी लगी ! फिर से आपको इस कहानी के लिये बधाई आपको! वेसे उस मैम का नाम तो उजागर कर दो !
ReplyDeleteअर्श
सच सच बताओ..एकदम सच्ची-मुच्ची..., माज़रा क्या था? वैसे अगर लेखकीय मन से सोचूं तो आपकी अधुरी या काल्पनिक वाली बात हज़म नहीं होती..। फिर भी..
ReplyDeleteनींद की चादर चीर के बाहर निकला था मै ,
ReplyDeleteआधी रात एक फोन बजा था....
दूर किसी मोहूम सिरे से
इक अनंजान आवाज ने छूकर पूछा था
आप ही वो शायर है जिसने
अपनी कुछ नज्मे सोना के नाम लिखी है
मेरा नाम भी सोना हो तो ?
इक पतली सी झिल्ली जैसी ख़ामोशी का लम्बा वक्फा
मेरे नाम इक नज़्म लिखो ना !
मुझको एक छोटे से शेर में सी दो ,
"अंजल "लिखना
शायद मेरी आखरी शब् है
आखिरी ख्वाहिश है ,मै आप को सौप के जायूं?"
फोन बुझाकर
धज्जी धज्जी नींद में फिर जा लेटा था मै !
अंजल !
इसके बहुत दिनों बाद मालूम हुआ था
दर्द से दर्द बुझाने की इक कोशिश में तुम
केंसर की उस आग में मेरी नज्मे छिड़का करती थी .....
नींद भरी वो रात कभी याद आये तो
अब भी ऐसा होता है
एक धुआ सा आँखों में भर जाता है
-Gulzar
he writes it in round about in yr 1994....
in b/w
एक सिगरेट तुम्हारे नाम की आधी जली रखी है
उफ्फ्फ्फ़. ................... एक एक लफ्ज़ कई बार पढना पड़ रहा है, पूरी पोस्ट के बारे में क्या कहूं.
ReplyDeleteजिस तरह से वो शाम ठिठकी थी, लाजिमी है ये वक़्त भी ठिठक गया होगा.
आपरी कहानी भी कविता की तरह बहती है । पर जानने को उत्सुक हूँ कि वाकई एस एम एस आया कि नही ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteabhi theek se padhaa nahin hai...
aur aaj 3-4 comments diye hain hindi mein...ye pahlaa comment hai jo ROMAN mein likhaa hai.....
maariyegaa mat hamein...
:)
ReplyDeleteमैं पक्का कह सकता हूँ कि वह एस.एम.एस. तो नहीं आया.... पर दूसरी तरफ़ से अभी भी निगाह रखी जा रही है । एस.एम.एस. के बारे में पूछ कर अफ़सानानिगार के बेकसी की टोह ली जा रही है । किसी के दिल में जीने का लुत्फ़ एक नशा है, नन्हीं परी इस एहसास से अपने को कभी नहीं अलग कर पायेगी ।
कहानी का ताना-बाना एकदम चाक चौबन्द है, फ़ौज़ी यूनीफ़ॉर्म की माफ़िक !
gautam...main bahut late lateef hoon blogs padhne mein. par aaj tumhe follow kar rahi hoon. ye batao....ue phone wali ne ye post padhi ya nahi? yadi haan...to uske baad phone karke kya kaha?
ReplyDeleteकहानी मे भी शायराना अन्दाज़्\ प्रिकथा मे आपकी कहानी पढी। सच मे आप तो एक अच्छे कहानी कार भी हैं। कहानी बहुत ही रोचक थी। कथानक शैली शिल्प सभी कुछ। आशा है भाविष्य मे और इतनी अच्छी कहानियाँ पढने को मिलेंगी। बहुत बहुत शुभकामनायें।
ReplyDelete'ख्वाब का सबसे खास हिस्सा उस गली का दिखना था।'
ReplyDeleteख्वाब के कुछ हिस्से बहुत खास होते हैं..सही कहा आपने...
जैसे उस मोहतरमा को आपकी कहानी सच लगी वैसे हिन् ये घटना मुझे सच लग रही है..पर फ़ोन नहीं कर रहा कि आप कहोगे 'अरे ये तो बुनी गयी है उस कहानी की तरह'
sgdhjsgadcjsgc
ReplyDeletestalking a poet, an author or a soldier?
ReplyDeleteजन्म दिन की ढेर सारी शुभ कामनाएँ...
ReplyDeleteअब पढ़ी वो कहानी जाकर....गज़ब!
ReplyDeleteसचमुच
ReplyDeleteसवाल बाकी है
एस एम एस आया कि नहीं?
वो एस.एम.एस आया या नहीं :)
ReplyDeleteओहहह मैंने नन्ही परी की कहानी नहीं पढी थी , मुझे ये कमेट नहीं देना चाहिए थी, क्या वाकई आपको लगता है कि कोई एसएमएस आएगा
ReplyDeleteपर पता नहीं कहानी पढकर कुछ अजीब सा लग रहा है, मैंने ये कहानी मिस कैसे कर दी मैं हैरान हूं...शायद बहुत सालों बाद आपके ब्लाग पर आई हूं मेजर साब लेकिन आकर दुख हुआ कि इतने समय से मैं आपको पढ क्यूं नहीं रही थी
आपके ब्लॉग को पढ़ कर आदमी शुकून के करीब पहुँच सकता है
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