तमाम शोर-शराबे, हर्षोल्लास के पश्चात एकदम से थमक कर संभला हुआ ये दो हजार ग्यारह ढ़र्रे पर आ गया लगता है अब और फिलहाल अपने दैत्याकार में खड़ा मुँह-सा चिढ़ा रहा है। अभी कल ही की तो बात थी जैसे...टीन-एज की ड्योढ़ी पर बैठा मैं घड़ी की सुई को तेज-तेज घुमा कर, कैलेंडर के पन्नों को जल्दी-जल्दी पलटा कर देख लेना चाहता था खुद को इस नये दशक में। देखना चाहता था कि क्या हूँ मैं, क्या कुछ है जमा मेरे वास्ते और जब देख चुका तो वापस उसी ड्योढ़ी पर जाकर बैठ जाना चाहता हूँ। नहीं, उससे पहले एक बार फिर से घड़ी की सुई को तेज घुमा कर देख लेना चाहता हूँ अगले साल को...अगले दशक को। काश कि ये संभव हो पाता...!!!
चिल्ले-कलाँ अपने समापन पर है और वादी अपने धवल-श्वेत लिबास में किसी योगी की भाँति तपस्या में तल्लीन-सी। देर रात गये चिनार की शाखों और बिजली के तारों पर झूलते बर्फ धम-धम की आवाज के साथ टीन के छप्पर पर गिरते हैं और मेरी नींद स्लिपिंग-बैग में कुनमुनायी-सी, मन की तमाम आशंकाओं के साथ गश्त लगाती फिरती है सब रतजगों की चौकसी में। कितने अफ़साने हैं इन ठिठुरते रतजगों के जो लिखे नहीं जा सकते...! कितनी कहानियाँ हैं इन उचटी नींदों की जो सुनाई नहीं जा सकती...!! गश्त करता आशंकित मन पोस्ट-दर-पोस्ट खड़े प्रहरियों के बारे में सोचता है और रतजगे की कुनमुनाहट मुस्कान में बदल जाती है...ये मुस्कान एकदम से बढ़ जाती है जब मन ठिठक कर महेश पर आ रुकता है।
दूर उस टावर वाले पोस्ट पर महेश खड़ा है...लांस नायक महेश सिंह। पिथौड़ागढ़ का। पिथौड़ागढ़- कुमाऊँ का अपना पिट्सबर्ग :-)। महेश...दिखता तो मासूम-सा है, लेकिन है बड़ा ही सख्त और मजबूत...और उतनी ही सुरीली आवाज पायी है कमबख्त ने। एक टीस-सी उठा देता है जब तन्मय होकर गाता है वो। उसी ने तो सिखाया था मुझे ये प्यारा-सा कुमाऊँनी गीत:-
हाय तेरी रुमालाsssss
हाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखड़ी
के भली छजी रे नके की नथुली
गवे गवे बंदा हाथ की धौगुली
छम छमे छमकी रे ख्वारे की बिंदुली
हाय तेरी रूमालाssss...
...और जब से उसे पता चला कि मुझे मो० रफ़ी के गीत खास पसंद हैं, तो अब तो हर मौके पर रफ़ी साब छाये रहते हैं महेश के होठों पर। थोड़ा-सा आगे की तरफ झुक कर शरीर का बोझ तनिक ज्यादा आगे वाले दाँये पाँव पर डाले हुये और दोनों हाथ पीछे बाँध कर जब वो "दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, यादों को तेरी मैं दुल्हन बना कर..." गाना शुरू करता है तो आप आराम से अपनी आँखें बंद कर प्यानो पर बैठे शम्मी कपूर को सोच सकते हैं, कानों में रफ़ी की ही आवाज आयेगी। सोचता हूँ, उसे अगली बार इंडियन आइडल के लिये भिजवाऊँ।
...उधर ज्यों ही रात भर रात पर झुंझलाती हुई बर्फ की परतों को सुबह की झलकी मिलती है, इधर त्यों ही रतजगे को सकून भरी नींद !!!
गौतम साहब, सबसे पहले आपको, और आपके सभी साथियों को नए साल, लोहडी, मकर संक्रांति और आने वाले गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteयादों के खूबसूरत लम्हों को अपनी ताक़त बनाने वाले
सरहदों के निगेहबान सिपाही के ये जज़्बात पेश करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
क्या लिखते हो गौतम !मज़ा आ जता है पढ़ कर आज सुबह ही सुबह मिल गई ये पोस्ट गोवा में भी ठंड महसूस होने लगी
ReplyDeleteदूर उस टावर वाले पोस्ट पर महेश खड़ा है...लांस नायक महेश सिंह। पिथौड़ागढ़ का। पिथौड़ागढ़- कुमाऊँ का अपना पिट्सबर्ग :-)। महेश...दिखता तो मासूम-सा है, लेकिन है बड़ा ही सख्त और मजबूत
सलाम है इन जांबाज़ों को जिन की देश भक्ति को ठंड ,गर्मी ,बरसात कुछ भी प्रभावित नहीं कर पाता
उम्दा पोस्ट !
गौतम आपके लेखन का जवाब नहीं...गश्त लगाती नींद...पोस्ट दर पोस्ट खड़े प्रहरी...ठिठुरते रतजगे...झुंझलाती हुई बर्फ...वाह...लफ्ज़ लफ्ज़ में शायरी है...सलाम करते हैं महेश को जो विपरीत परिस्तिथियों में भी "दिल के झरोखे में तुझको बिठा कर..." गीत गाता है...ज़िन्दगी जीना क्या होता है कोई आप जैसों से सीखे...
ReplyDeleteनीरज
हाय तेरी रुमालाsssss
ReplyDeleteहाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखड़ी ..
तेरी गव्वें जंजीरा हाथों में पौन्जिया..
छन्न-छन्न छन्न्कानी कलाई चूड़ियाँ..
(...उधर ज्यों ही रात भर रात पर झुंझलाती हुई बर्फ की परतों को सुबह की झलकी मिलती है, इधर त्यों ही रतजगे को सकून भरी नींद !!! )
अहदे जवानी रो-रो के काटा ,
पीरी में ली आँखें मूँद ..
यानि रात बहुत थे जागे,
सुबह हुई आराम किया.. ;)
फौजी स्पेशल इंडियन आयडल का भी योग बनता है।
ReplyDeleteपढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा | अपनी सकून भरे बिस्तर में रह कर हम शायद कभी भी आप लोगों के जीवन की कठिनाइयों को उतनी शिद्द से समझ नहीं पाएंगे |
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है गौतम जी यूँ लगा जैसे हम भी वहाँ उन वादियो मे हों…………बहुत खूब ख्यालात हैं आपके।
ReplyDeleteसायकिल के डंडे पर तुझको बिठा कर
ReplyDeleteस्कूल से तेरी अटेंडेंस लगवा कर
ले जाऊंगा फिल्मिस्तान
मत हो मेरी जां उदास
ये कैसा रहेगा!!!!!! पोस्ट पढ़ कर लगता है मुझे भी पिट्सबर्ग जाना ही चाहिए. लाजवाब बेमिसाल...सराहनीय ...और क्या कहूँ
आज सुबह ठीक सात बजे भारतीय सेना के जवानों के साथ किसी कार्यक्रम में भाग लिया और उनको संबोधित भी किया । जाहिर सी बात है संबोधन में एक नाम बार बार लिया अपने अनुज गौतम का । दुख के जिस कुहासे में घिरा हूं उस कुहासे के बीच सेना के इस कार्यक्रम में जाना जैसे अपने को कुहासे से बाहर लाना था । कोई काश्मीर का जवान था जब मैंने गौतम राजरिशी का नाम लिया तो उसने खूब तालियां बजाईं । आज की सुबह सार्थक हो गई । महेश के गीतों को रिकार्ड करके भेजो ताकि उसके आडियो लिंक बना कर मैं सबको सुनाऊं । अपना ध्यान रखना ।
ReplyDeleteजय हिंद, गौतम भाई !
ReplyDeleteआप लोगो के इस मस्त मौला जज्बे को हर पल सलाम करता हूँ ... असली ज़िन्दगी कैसे जी जाती है यह तो कोई आप फौजियों से सीखे !
लगे रहिये !
हाँ एक जानकारी दीजियेगा अगर मौका मिले ...
डल झील में जमी हुयी बरफ के साथ अगर वोदका मिला कर पी जाए तो नशा किस में ज्यादा होगा ?
आज सुबह जब एक नज़र ब्लॉग रोल पे डाली तो ये पंक्तियाँ "हाय तेरी रूमालाssss..." ने ध्यान खींच लिया और उस पे ये आप के पोस्ट की headline .............उफ्फ्फ.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गीत है, जहाँ तक मुझे याद है, गोपाल बाबु गोस्वामी जी की आवाज़ में ये सुन ने वाले पर जादू ही कर देता है, और वाकई महेश जी ने समां बाँध दिया होगा.
आखिर फौजी ही लगा हुआ है देश रक्षा में ,चाहे वो सरहदों की हो या फिर संस्कृती की हो .. अब होने को तो मैं भी उन ही पहाड़ों की चोटियों में से एक रानीखेत का रहने वाला हूँ मगर "हाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखडी " शायद ही कभी गुनगुनाता हूँ ,
ReplyDeleteहम तथाकथित उदारवादी ,विकास की दौड़ के सिपाही कहाँ जमीन से जुड़े रह पाते हैं :( ... अपनी जमीन से कटने का अहसास तब होता है जब जगजीत की ग़जल सुनाई देती है ,बाय चांस कल ही चल पडी थी ..
"हम तो हैं परदेश में देश में निकला होगा चाँद "...
कुल मिलाकर आपके ब्लॉग ने यादें तेज़ कर डाली ..
शुक्रीया
हाय तेरी रुमालाsssss
ReplyDeleteहाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखड़ी
पिथोरागड़ और इस गीत से बचपन का नाता है.
कमाल का लिखते हैं आप.बेहद सुन्दर.
शीर्षक पढ़कर ही मुंह से सीटी निकल गयी थी... कितना आहें भरता हुआ है . है ना ???? महेश बाबू को कहियेगा हमने पसंद किया :)
ReplyDeleteबाकी की तरह नीरज गोस्वामी जी ने इशारा दे दिया है
ReplyDeleteमहेश जैसे सैनिकों की आप हौसला बढ़ाते रहें, वैसे इस देश में लाखो ही नहीं करोड़ों गायक हैं, जो समाज के विभिन्न वर्गों का आनन्द देते हैं। मेरी शुभकामनाएं ऐसे गायकों को।
ReplyDeleteGautam,
ReplyDeleteEveryday I open your blog to see if you have written any thing new. Today, after seeing your post my day was made. Hope to hear Lance Naik Mahesh Singh in Indian Idol soon.
गौतम भाई.......
ReplyDeleteहाय तेरी रुमालाsssss
ओये होए.....क्या बात है.....कुमयुनी रंग में कश्मीर की जाफरानी खुसबू से लबरेज़ ये पोस्ट दिल को छू गयी.....!
महेश जैसे लोगों की बदौलत ही ये देश सुकून से सोता है......! हंस में छापी कहानी पर अपनी त्वरित टिप्पणी भेज चुका हूँ.....तफसील से आगे लिखूंगा....!!!! बाकी बातें होती हैं फोन पर.......एक बार फिर से हो जाए हाय तेरी रुमाला.... !!!!!!!!!!
गौतम भाई.......
ReplyDeleteहाय तेरी रुमालाsssss
ओये होए.....क्या बात है.....कुमायूनी रंग में कश्मीर की जाफरानी खुशबू से लबरेज़ ये पोस्ट दिल को छू गयी.....!
महेश जैसे लोगों की बदौलत ही ये देश सुकून से सोता है......! हंस में छापी कहानी पर अपनी त्वरित टिप्पणी भेज चुका हूँ.....तफसील से आगे लिखूंगा....!!!! बाकी बातें होती हैं फोन पर.......एक बार फिर से हो जाए हाय तेरी रुमाला.... !!!!!!!!!!
कितने अफ़साने हैं इन ठिठुरते रतजगों के जो लिखे नहीं जा सकते...!
ReplyDeleteकितनी कहानियाँ हैं इन उचटी नींदों की जो सुनाई नहीं जा सकती...!!
गश्त करता आशंकित मन
पोस्ट-दर-पोस्ट खड़े प्रहरियों के बारे में सोचता है
और रतजगे की कुनमुनाहट मुस्कान में बदल जाती है...
गौतम के दिल के आँगन में विचरते हुए
ये मासूम जज़्बात ,
गौतम की लेखनी का नफ़ीस लम्स पाते ही ,
कुछ जादुई लफ़्ज़ बन ,
गौतम के अपने कलेंडर के पन्नों पर रक्स करते-करते
सभी पढने वालों को अपना,,
बहुत अपना बना लेते हैं... !!
और फिर
कोई
इस तिलिस्म से बाहर आ पाए,तो कुछ कहे ना !
लेकिन हाँ ...
रफ़ी साहब का एक गीत तो
गौतम की ज़बानी भी सुनना है हमें ..
(आँचल में सजा लेना कलियाँ...)
हाय तेरी रुमाला.....गजब।
ReplyDeleteOne more Prashant Tamang in making !!!
ReplyDeleteMake it translated by mahesh da:
ReplyDeleteआहा दाज्यू ! कमाल कर हालो यार तुमुल, बाप कश्म ! महेश दा की ले म्यार उर बटिक पैलाग. ऊ दिन याद ऐ गयीं जब हम कुमौनी गीतक अंग्रेजी मा जी अनुवाद करछिया...
"यौर बफलो हंगरी रंभानी...
ओ लीला ग्रास-कटर."
या...
ओह युअर हैंकरचिफ, अरे, ओह युअर हैंकरचिफ, रोज़ी रोज़ी फ़ेसा, (सीटी...)
वाऊ वट(अ) वन्डरफुल, रिंग्ज इन दा नोज़ा.(सीटी)
म्यर पैदाइश ले पिथोरागढ़, घंटाघरके छू. मिकी लागूं जो ले पिथोरागढ़ में पैद हुनी टैलेंटेडे हुनी. ;)
ख़ैर, काँ ज गयी ऊ दिन, ऊ जीरक-धुंगार, ऊ ठटवाडी भात दगड़ लाई सागाक टपुकी, ऊ निम्बू सानुन, ऊ गाड गधियार में डोलिन, ऊ भांग हाली साग, आहा !
सब हराण दाज्यू सब हराण . :(
ज़िन्दगी अणकस्से है गे. एक कबिता :
नाना-नान हैं गयीं यो सुख,
टपुकी जय्स.
काल हैं गयीं यो दुःख,
ठटवाडी जय्स,
तभे, लगे-लगे बेर खाण लाग रियां हम,
जीवनक भात दगड़ सुखाक 'टपुकी'
पूर कुमौं रेजिमेंट की काले कव्वा और उत्रायानीक बधाई. गोलू देयाप्ता सबनक भल कराल.म्यर ले....
"ले कव्वा एंण, मिकी दे भल भल शैण."
कल तेरे जलवे पराये भी होंगे...
ReplyDelete...लेकिन झलक मेरी आँखों में होगी.
अगली दफे ये गीत मेरी तरफ से फरमाईश करके सुन लीजियेगा.. "दिलsss जो ना कह सका.... वही राज-ए-दिल... कहने कि राssत आssईssss..." :)
ReplyDeleteउम्र टटोलती है .नया साल भी.......ठण्ड भी.......ओर कभी कभी दिल का एक हिस्सा भी........कितने चेहरों से रोज रूबरू......दिल की भी एक ड्यूटी है साहब ....बस उसे होलीडे नहीं मिलता ......
ReplyDeleteबाप रे...कितने दिनों बाद निकला सूरज...
ReplyDeleteहम भी इस सूरज के बिना ठिठुरे हुए थे...मन खिला दिया...वाह...
जरूर भेजिए महेश जी को इंडियल आयडल में...
आपकी बातों को बस फील ही तो कर सकते हैं. और कुछ बातें बिन अनुभव के एक स्तर तक ही तो महसूस की जा सकती हैं.
ReplyDeleteयह गीत तो बींधने वाला है; बाहर भीतर दो ओर से। अक्सर सुनता हूँ इसे लेकिन अबसे इसे सुनते हुए आपके सुने - गुने की याद आएगी।
ReplyDeleteझुंझलाती बर्फ की परतों के बीच रतजगा कितनी पलकों को सुकून की नींद देता है , फिर अपनी तलाशता है ...
ReplyDeleteहाय तेरी रूमाला ...अच्छा लगा इसे पढना !
.
ReplyDelete.
.
हाय तेरी रूमाला...
जीवंत शब्द चित्र... ऐसा लग रहा है कि मैं भी सुन रहा हूँ दूर कहीं बैठे महेश को...अपनी ही धुन में अपने 'देस' पहुँच गाते हुए...
आभार!
...
मुस्कराहट, जिंदगी, जिन्दादिली की बारिश एक साथ...
ReplyDeleteअसली ज़िन्दगी कैसे जी जाती है यह तो कोई आप फौजियों से सीखे !
ReplyDeleteगवे गवे बंदा हाथ की धौगुली
ये लाइन इस तरह है
गवे गलोबंदा हाथै की धागुली|
आपका बहुत बहुत शुक्रिया|
वाह क्या खूबसूरत ब्लॉग है......
ReplyDeleteवैसे अगर घड़ी की सुइयों के सहारे वक्त को कंट्रोल किया जा सकता..तो शायद मै घड़ी की बैटरी ही निकाल कर छुपा देता कहीं..हमेशा के लिये..पोस्ट भली सी लगती है..उतरती सर्दी सी..गरम इलायचीदार चाय की महक सी..और जब आप कुनमुनाई नींद के आशंकाओ संग गश्त लगाने की बात लिखते हैं..तो समझ आता है कि लिखने वाले का सिग्नेचर स्टाइल कैसे बनता है...और शुक्रिया दर्पण के दिये लिंक का..कि गाना सुनने को मिला तो उसकी खूबसूरती समझ आयी..और महेश की जुबां पर बसे होने का राज भी..बहुत सारी चीजें होती हैं हमारी जिंदगी मे ऐसी..जो हमें जिंदगी से बांधे रखती हैं..मजबूती से..तो कभी समझने मे सूत भर वक्त का फ़रक हो जाता है!..
ReplyDeleteयह भी पता चलता है कि मजे भी करते हैं आप उधर..मधुर गानों के लाइव पर्फ़ार्मेंस का.. :-)
bahut sundar post... yaade ... bahut khoob... isme jo pahadi geet likha hai vah aik bahut popular gazab kaa geet hai
ReplyDeleteaapki yah khoobsurat prastuti kal charchamanch par rakhi jayegi .. aap vaha par apne vichar likh kar anugrahit karen ...
www.charchamanch.uchcharan.com
सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई भाई गौतम जी
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट और ब्लॉग चर्चामंच पे है..
ReplyDeleteआज ४ फरवरी को आपका आभार ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html
गौतम भैया आप बिजली विभाग में हो क्या? हर बार और ज़्यादा ज़ोर का झटका वो भी बड़े ही हौले से दे जाते हो!
ReplyDeleteग़ज़ल में झटके खाए और अब गद्य में भी| कभी लगता है हालत बयान कर रहे हो, कभी किसी को उत्साह देते लगते हो तो कभी प्रकृति का वर्णन| बहुत कुछ है इस प्रस्तुति में|
जन-साधारण को समझ आ सकने वाली भाषा में ज़मीन से जुड़ी बात| क्या बात है मित्तर............बहुत खूब|
गौतम साहेब,
ReplyDeleteमैं क्या कहूँ,...
बहुत दिनों बाद आ पाया और आपको पढ़ पाया...
आप बेहद सुंदर लेखक होते जा रहें हैं..
भगवान आप को और प्रगति दें...
पहले तो इस पोस्ट पर डा. अनुराग का कमेन्ट ढूँढा उम्मीद के मुताबिक पढते ही मज़ा आ गया...
ReplyDeleteऐसा नहीं की आपका लिखा पसंद नहीं.. पर इस पर उनका कमेन्ट लाजिमी था..
आदरणीय गौतम जी,अति व्यवस्तता के कारण सुबह का अखबार भी दंग से नहीं पढ़ा जाता,आज अवकाश था तो कल का अखबार भी खोल लिया पढने को ...ओर ज़नाब गौतम राजरिशी को अखबारमे देख कर अत्यंत हर्ष हुआ ..आप की रचना ' हाय तेरी रूमाला .....'आपकी तस्वीर सहित आज समाज के चंडीगढ़ संस्करण में पाकर हम तो धन्य हो गए रचना पढ़ कर भाव विभोर होना लाजिमी था ...सभी मित्रों को बताते हुए बड़ा गर्वित महसूश किया की हमारे ब्लॉग परिवार के हरदिल अज़ीज़ गौतम जी देश के निगेहबान तो है ही साहित्य के दीवाने भी है ....जनाब को salute ओर महेश जी को भी बधाई .
ReplyDeleteहाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखडी .....