उस दिन सतपाल ख्याल जी के आज की ग़ज़ल पर नसीम भरतपु्री साब की एक ग़ज़ल के मिस्रे पर तरही मुशायरे का आयोजन हुआ था और लगभग पच्चीस शायरों ने हिस्सा लिया। मिस्रा था "कभी इन्का़र चुटकी मे कभी इक़रार चुटकी मे"। तमाम शायरों को पढ़कर इतनी हैरानी हुई कि कैसे महज एक मिस्रे पे और करीबन मिले-जुले काफ़ियों पर कितने जुदा-जुदा खयाल निकल कर सामने आये...तो उसी मुशायरे में इस अदने को भी अपनी ग़ज़ल को शामिल करने का अवसर दिया गया था। पेश है वो ग़ज़ल:-
निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में
नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में
कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में
हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में
{ये शेर चचा ग़ालिब से क्षमा-याचना सहित}
उसी मुशायरे से कुछ अन्य शेर जो मुझे बहुत भाये, वो भी सुन लीजिये:-
मुफ़लिस जी
बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सर
फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में
खयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आया
मुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में
द्विज जी
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
मनु जी
वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में
पूर्णिमा वर्मन जी
ख़ुदाया कौन-से बाटों से मुझको तौलता है तू
कभी तोला, कभी माशा, कभी संसार चुटकी में
नवनीत शर्मा जी
सुनो, जागो, उठो, देखो कि बरसों बाद मौका है
अभी तुमको गिराने हैं कई सरदार चुटकी में
सतपाल जी
हमारा ज़िक्र जब छेड़ा किसी ने उसकी महफ़िल में
हुए हैं सुर्ख़ तब उसके लबो-रुख़सार चुटकी में
दिगम्बर नासवा जी
ये घर का राज़ है तुम दफ़्न सीने मे करो इसको
नहीं तो टूट जायेंगे दरो-दीवार चुटकी में
मुनीर अरमान नसीमी जी
तुम्हारी इक निगाहे नाज़ के सदक़े मैं ऐ जानाँ !
हुए हैं *ख़म न जाने कितने ही सरदार चुटकी में
दर्पण शाह जी
लगे है सरहदें 'दर्शन', घरों के बीच की दूरी,
मिला तू हाथ हाथों से, गिरा दीवार चुटकी में
....ये तो बस कुछ झलकियाँ हैं। पूरा मुशायरा सुनना हो तो यहाँ और यहाँ क्लीक कर देखें।
बहुत लाजवाब जानकारी मुहैया करवाई आपने. आनन्द आगया. आज शाम फ़ुरसत से बैठकर आनन्द लेते हैं इन links पर जाकर.
ReplyDeleteऔर आपकी रचना तो हमेशा की तरह नायाब है. बधाई.
बहुत धन्यवाद.
रामराम.
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
ReplyDeleteकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
waah brhad sunder
" मिला कर आँख-से-आँखें करो इकरार चुटकी में
ReplyDeleteउडा कर शर्म का पल्लु गले लग जाओ चुटकी में।"
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहोत खूब गौतम भाई ... सुदर तरीके से सजाया है आपने ये किरदार चुटकी में .... ढेरो बधाई..
ReplyDeleteअर्श
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
ReplyDeleteकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
" क्या शानदार ग़ज़ल पेश की है आपने...हर शेर कमाल....ये चुटकी का भी खूब कमाल रहा....."
Regards
हर शेर लाजवाब,जितनी तारीफ़ की जाये कम है।
ReplyDeleteis shayari ki aur in shayaron ki jitani tareef ki jaye kam hai magar ise ham tak pahunchane ke liye apka bahut bahut dhanyvad
ReplyDeleteवाह! क्या बात है..एक मिसरे पर इतने ख्याल!
ReplyDeleteबहुत खूब!
आप की ग़ज़ल तो खूबसूरत है ही..सभी शेर कमाल के हैं.
ख़ास कर यह--
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
-आभार
बाकि शायरों के शेर भी पढे..मुशायरा भी सुनते हैं थोडी देर में.
आह्हा .....!! गौतम जी यहाँ तो चुटकी में इतना कुछ हो गया और हमें पता ही नहीं चला .....और आपने तो कमाल ही कर दिया चुटकी में.........!!!!
ReplyDeleteनिगाहों से ज़रा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी , गिरे सरकार चुटकी में
वाह .....वाह......!!
और ये...
न मंदिर की ही घंटी से न मस्जिद की अजानों से
करे जो इश्क,वो समझे जगत का सार चुटकी में
बहुत खूब गौतम जी ......!!
और झटक के जुल्फ को अपनी.....ने तो लाजवाब कर दिया .....!!
और हाँ ...मनु जी, मुफलिस जी ,द्विज जी , सतपाल जी, नासवा जी और दर्पण जी के अस'आर भी बहुत पसंद आये ........!!
बहुत बढिया कहा ...कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे ..पहले भी पढ़ा था यह ..बहुत पसंद आया था हर किसी का अंदाज़ ....
ReplyDeleteचचा गालिब वाला शेर हमने रख लिया है जी......
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल तो पहले भी पढी थी ..........आज फिर उसका आनंद ले लिया...........
बाकी सारे शेर अलग अलग चमकते हीरे हैं.
शुक्रिया दुबारा पढ़वाने की लिए.
आप कैसे हैं...........आशा है परिवार मैं सब ठीक होंगे............अगली बार जो कभी मुलाक़ात होगी, लम्बी मुलाक़ात करेंगे
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकई रातें जो जागूँ मै, तो मिसरा एक जुड़ता है,
ReplyDeleteउधर झपके पलक उनकी बने अशआर चुटकी में।
क्या बात है वीरा......! बड़ी सही बात कही...!
द्विज जी, पूर्णिमा वर्मन जी और सतपाल जी के भी शेर भाये...!
वाह गौतम भाई इतनी प्यारी सुन्दर रचना लिख दी वो भी एक चुटकी में। और आपकी हर चुटकी मन को भाई।
ReplyDeleteन मंदिर की ही घंटी से न मस्जिद की अजानों से
करे जो इश्क,वो समझे जगत का सार चुटकी में
वाह क्या कहने। और साथियों की चुटकियाँ भी भाई हमको जी।
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से
ReplyDeleteकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
gautam ji itni sunder lajawaab,har sher anmol, gazal ke liye dheron badhai.
तुम्हारी ग़अल पहले पढ़ चुकी थी। हर शेर भाया। ख़ास कर-
ReplyDeleteकहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
और ये भी
निगाहों से ज़रा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी , गिरे सरकार चुटकी में
वाह! क्या बात है। सही बहर-ओ-वज़न में बंधी, सुंदर ग़ज़ल।
maza aa gaya ...ek se badhkar ek
ReplyDeleteWAAH...
ReplyDeleteaapne bahut khoob likhaa he..chuti jab itni badi ho yaani itne saare likhaad pesh karte ho to kese padhe ham CHUTKI me...
ye chutki aour jyaada badi hoti rahe aour khoobsoorat rachnaye padhne ko milti rahe to baat ban jaaye chutki me...
sach me mazaa aa gaya..
aap mere blog par jab bhi aate he dil khush ho jaata he mano mere shbd saarthak ho jate he...dhnyavaad
गौतम जी,
ReplyDeleteखुद तो शानदार चुटकी बजाई ही,,,,,साथ साथ सभी की चुटकियाँ भी छंट कर ले आये ,,ये और भी अच्छा लगा,,,,,
मगर अब के बार द्विज भाई ने टेढा काम दे दिया,,,,,
कुछ सोचते ही पूरी गजल सामने आ जाती है,,,,,आशा भोंसले की आवाज में,,,,,ध्यान ही नहीं लग पा रहा,,,,
आपकी ग़ज़ल पसंद आई। हर शे'र खूबसूरती से लिखा गया है। नपी तुली ग़ज़ल है।
ReplyDeleteपढ़कर मज़ा आगया।
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
ReplyDeleteकभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
--गज़ब भाई गज़ब!! बहुत खूब पूरी गज़ल उम्दा!!!
गौतम जी देर से आने के लिए माफ़ी...दरअसल जयपुर आया हुआ हूँ और यहाँ ग़ज़ल के दीवान जैसी " मिष्टी " को पढने से फुर्सत ही नहीं मिलती...हर लम्हे एक से एक बढ़ एक शेर जैसी हसीन शरारतें करती है की मुकरर इरशाद करते करते कब दिन बीत जाता है पता ही नहीं चलता...
ReplyDeleteआप की लाजवाब ग़ज़ल पढ़ी...दांतों तले उँगलियाँ दबाये बैठा हूँ...क्या शेर कहें हैं एक से बढ़ कर एक...बेहतरीन...कायल हो गया आप के इस हुनर का और वो भी तहे दिल से...किसी एक शेर पर टिपण्णी करने से बाकियों के नाराज़ होने का अंदेशा है,,,इसलिए ये कह कर बात ख़त्म करता हूँ की भाई आनंद आ गया...लिखते रहो...यूँ ही.
नीरज
अद्भुत!
ReplyDeletegazal aur har sher ka jawaab nahi,dil pe utar gaya jo chutkiyon me,wo hai
ReplyDeleteलगे है सरहदें 'दर्शन', घरों के बीच की दूरी,
मिला तू हाथ हाथों से, गिरा दीवार चुटकी में
हम भी जता देते हैं अपना आभार चुटकी में...क्या खूब लिखा है. एक एक शेर लाजवाब कर गया, किसी एक की तारीफ करूँ तो नाइंसाफी...और हर एक की तारीफ़ करने लागून तो एक पोस्ट ही बन जायेगी. इसलिए हम इस बार एक चुटकी में ही कहेंगे की वाह वाह वाह!
ReplyDeleteThis is for My four favorites (Manu, Gautam, Mufils, Dwij):
ReplyDeleteलिखा है बारसा मैंने, हमेशा हाय बेजा ही ,
मिला जो साथ तेरा आ गए अशआर चुटकी में।
@Rashmi Prabha ji Thanks,
Batana chahoonga ki jo bhi kuch seekha hai usmein gautam ji ka bhi bahut haat hai, warna to"Nazm Uljhi Thi".:
हवाएं बादबानी के रुखों को मोड़ देती हैं,
हुये हैं तैरकर दरिया, हमेशा पार चुटकी में।
नहीं दरकार है मुझको ,करूँ क्यों सैर दुनिया की
ReplyDeleteतेरे पहलू में देखूँ अब ,दिशाऐं चार चुटकी में
गौतम जी
चुटकियाँ बजाते ही क्या उम्दा ग़ज़ल लिख लेते हैं आप लोग ..
Amazing !!!
मुफलिस जी के ब्लॉग पे आपकी लाजवाब टिपण्णी देखी तो रहा न गया और यह बताने चली आई कि आप सिर्फ रचना को ही नहीं रचना के आस पास भी देखते हो ....!!
ReplyDeleteबेहतरीन .
ReplyDeleteतारीफ मेँ मुझको
शामिल समझा जाये
सुन्दर.
ReplyDelete