हमेशा से...हमेशा ही से अटका रह जाता है "पुराना" साथ में...जेब में, आस्तीन में, गिरेबान में, स्मृति में, स्पर्श में, स्वाद में, आँखों में, यादों में...मन में|
ग़ालिब की छुटी शराब के मानिंद ही रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में इस "पुराने" का छोटा-बडा पैग बनता रहताहै...इत-उत...जब-तब|
बहुत भाता है पुराना
कब से जाने
तब से ही तो...
तीन, तीस या तीन सौ...?
लम्हे, दिन, महीने या साल ...??
कितनी पुरानी हो गई हो तुम...???
इतराती हो फिर भी
है ना ?
कि रोज़ ही नयी-नयी सी लगती हो मुझे...
रफ़ी के उन सब गानों की तरह
सुनता हूँ जिन्हें हर सुबह
हर बार नए के जैसे
या वही वेनिला फ्लेवर वाली आइस-क्रीम का ऑर्डर हर बार
कि बटर-स्कॉच या स्ट्रबेरी को ट्राय कर
कोई रिस्क नहीं लेना...
लॉयेलिटी का भी कोई पैमाना होता है क्या?
तुम्ही कहो...
तुम भी तो लगाती हो वही काजल
रोज़-रोज़ अल-सुबह
उसी पुरानी डिब्बी से
तेरा वो देखना तो फिर भी
नया ही रहता है हरदम
...और वो जो मरून टॉप है न तेरा
जिद चले जो मेरी तो रोज ही पहने तू वही
अभी चार साल ही तो हुए उसे खरीदे
अच्छी लगती हो उसमें अब भी
सच कहूँ, तो सबसे अच्छी
सुनो तो,
ग़ालिब के शेरों से नया कोई शेर कहेगा क्या
हर बार तो कमबख़्त नए मानी निकाल लाते हैं
जब भी कहो
जब भी पढ़ो
बहुत भाता है बेशक पुराना मुझको
अच्छा लगे है मगर
तेरा ये रोज़-रोज़ नया दिखना...
नए साल का छप्पर लगे दो हफ़्ते गुज़र गये, मगर बीता साल है कि अब भी टपक रहा है कई-कई जगहों से बारिश की बूंदों के जैसे| बीस-बारह{2012} की ये पहाड़-सी ऊँचाई शायद घिस-घिस कर कम लगने लगे इसी पुराने के टपकते रहने से| आमीन...!!!
ग़ालिब की छुटी शराब के मानिंद ही रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में इस "पुराने" का छोटा-बडा पैग बनता रहताहै...इत-उत...जब-तब|
बहुत भाता है पुराना
कब से जाने
तब से ही तो...
तीन, तीस या तीन सौ...?
लम्हे, दिन, महीने या साल ...??
कितनी पुरानी हो गई हो तुम...???
इतराती हो फिर भी
है ना ?
कि रोज़ ही नयी-नयी सी लगती हो मुझे...
रफ़ी के उन सब गानों की तरह
सुनता हूँ जिन्हें हर सुबह
हर बार नए के जैसे
या वही वेनिला फ्लेवर वाली आइस-क्रीम का ऑर्डर हर बार
कि बटर-स्कॉच या स्ट्रबेरी को ट्राय कर
कोई रिस्क नहीं लेना...
लॉयेलिटी का भी कोई पैमाना होता है क्या?
तुम्ही कहो...
तुम भी तो लगाती हो वही काजल
रोज़-रोज़ अल-सुबह
उसी पुरानी डिब्बी से
तेरा वो देखना तो फिर भी
नया ही रहता है हरदम
...और वो जो मरून टॉप है न तेरा
जिद चले जो मेरी तो रोज ही पहने तू वही
अभी चार साल ही तो हुए उसे खरीदे
अच्छी लगती हो उसमें अब भी
सच कहूँ, तो सबसे अच्छी
सुनो तो,
ग़ालिब के शेरों से नया कोई शेर कहेगा क्या
हर बार तो कमबख़्त नए मानी निकाल लाते हैं
जब भी कहो
जब भी पढ़ो
बहुत भाता है बेशक पुराना मुझको
अच्छा लगे है मगर
तेरा ये रोज़-रोज़ नया दिखना...
नए साल का छप्पर लगे दो हफ़्ते गुज़र गये, मगर बीता साल है कि अब भी टपक रहा है कई-कई जगहों से बारिश की बूंदों के जैसे| बीस-बारह{2012} की ये पहाड़-सी ऊँचाई शायद घिस-घिस कर कम लगने लगे इसी पुराने के टपकते रहने से| आमीन...!!!
mejor saahab, naye aur puraane ka sanyog achchhaa lagaa.....badhiyaa post hai.....lekin....lekin....lekin. .........peene ke liye sab-e-mahotaab to hai lekin saaki ka bharosa nahi kiyaa jaa sakataa.....bakaul gaalib.."mujh tak kab unki bazm me aata thaa daurey jaam,saaki ne kuchh milaa na diya ho sharaab me..."ok - jay hind....
ReplyDelete:)
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनायें!
मेजर सा'ब ! जय जय !
ReplyDeleteका हो कर्नल , इत्ता रोमांटिक फ़ोजी ।
ReplyDeleteई पोस्टवा का लिंक भेलन्टाईनिया दोस्त सबको थमा देते हैं । लपेट ले जाएगा सब । धरे रहिए थाम के ,पुरना नयका सबको । जय हो ।
पुराना पुराना कहाँ रहता है, वह तो स्मृतियों में आ आकर नया बना रहता है।
ReplyDeletePurani cheeze kambakht chooti nahee ...
ReplyDeleteAapka saath Bhi to puraana hai sir ....
Naya Saal mubarak ho ...
"इज्ज़त वतन की हम से है" ... गाने वाले ने इस दोस्त की भी इज्ज़त रख ली ... मान गए जनाब ... परसों हम ने पोस्ट की मांग की आज पोस्ट हाज़िर ... क्या बात है ... जय हो मेजर ... जय हो तुम्हारी ... और अजय भईया सही बोले ... "धरे रहिए थाम के ,पुरना नयका सबको" ... यही सब तो खजाने है अपने ! जय हिंद !
ReplyDeleteये कॉकटेल नज़्म तो खतरनाक चढ़ रही है, अब इसकी खुमारी तो इक उतारी भी मांगती है.
ReplyDeleteअपने चाहने वालों को घायल करने के लिए एक नया और बड़ा ज़ालिम अस्त्र खोजा है भैय्या, पहले ग़ज़लों से फिर कहानी और अब ये आज़ाद नज़्म में बिखरे ज़हर बुझे ख्याल.............उफ्फफ्फ्फ़
मेरी तो ये ही दुआ है कि कलमी अस्त्रों का ये ज़खीरा दिन-रात बढता ही रहे.........आमीन.
डूबते उतरते सवालों से मै एक ही चीज़ कहता हूँ......."स्टेचू "
ReplyDeleteगुनगुना रोमाँस ! मज़ा आया .
ReplyDeleteजय हिंद
ReplyDeleteBahut khoob!
ReplyDeleteNaya saal bahut,bahut mubarak ho!
नए पुराने की इस दौड़ में ...आपको नववर्ष की शुभकामनायें
ReplyDeleteकुछ पुराना होकर भी नया सा बन जाता है हमेशा.
ReplyDeleteनया साल शुभ हो.
सुनो तो,
ReplyDeleteग़ालिब के शेरों से नया कोई शेर कहेगा क्या
हर बार तो कमबख़्त नए मानी निकाल लाते हैं
जब भी कहो
जब भी पढ़ो
waah
गौतम इतने दिनों बाद तुम ब्लॉग में लौटे हो...तुम्हें और तुम्हारे लेखन को हम पाठक बहुत मिस करते हैं...शब्दों का ऐसा बेजोड़ संयोजन...भावों का ऐसा रूप और कहाँ देखने को मिलता है...कमाल करते हो भाई कमाल...बेहद खूबसूरत पोस्ट...बधाइयाँ बधाइयाँ बधाइयाँ...
ReplyDeleteनीरज
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteलॉयेलिटी का भी कोई पैमाना होता है क्या?
ReplyDeleteतुम्ही कहो...
क्या बेहतरीन सवाल उठाया है तुम ने :)
वाक़ई वफ़ादारी को कोई कैसे नाप सकता है या तो इंसान वफ़ादार होगा या नहीं होगा ,,कम या ज़्यादा कैसे हो सकता है
ख़ूबसूरत नज़्म !!
Happy New Year !!!!
ReplyDelete"कविता में अनिवार्य है कथ्य शिल्प लय छंद
ज्यों गुलाब के पुष्प में रूप रंग रस गंध"
इसे आपने अनर्गल-से अलाप का टैग दिया है.अगर आपको ऐसा लगता है तो क्यों न हर रोज़ ही ऐसी पोस्ट्स आती रहे.आपको लगेगा कि ऐसे कुछ लिख दिया और हमें रोज़ आपको पढ़ने का आनंद मिलता रहेगा.
ReplyDeleteमेरे इस अनर्गल का आशय है सर जी थोड़ा नियमित लिखते रहें.
और नया साल शुभ हो.जब छप्पर लग ही गया है तो उम्मीद कि पराना भी बारिश की तरह कुछ अरसा टपकता रहे.
बड़ी ऊंची-ऊंची बातें कहते हैं शायर लोग जी!
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteअच्छा लगे है मगर
ReplyDeleteतेरा ये रोज़-रोज़ नया दिखना... वाह। क्या बात है। गालिब के शेरों से माशूक का साम्य क्या खूब रहा। लगता है कि यूं ही बेख्याली में कुछ लफ्ज बुन दिए हों आपने क्योंकि यत्न से कही गई कविता इतनी सहज नहीं होती।
आप सब का आभार....
ReplyDeleteये कविता कहीं से नहीं है| मेरी हैसियत नहीं कविता लिखने जैसा महान कर्म करने की| सोचा स्पष्ट कर दूँ...ये बस "अनर्गल से अलाप" हैं मेरे-और कुछ नहीं|
गौतम भाई
ReplyDeleteनए साल के छप्पर से पुराने साल के लम्हे रिस रहे हैं.... यह रिसाव महसूस करना आसान भी नहीं मुश्किल भी नहीं. वैसे चीजें पुरानी होती ही कब हैं.... यह कायनात को बने इतने दिन हो गए तो क्या यह पुरानी है ???????
...और वो जो मरून टॉप है न तेरा
जिद चले जो मेरी तो रोज ही पहने तू वही
अभी चार साल ही तो हुए उसे खरीदे
अच्छी लगती हो उसमें अब भी
सच कहूँ, तो सबसे अच्छी
इस मरून टॉप का जलवा ताजिंदगी चलता रहे .... नये साल की दिली शुभकामनाएं.
Awesome creation........:)
ReplyDeleteI am speechless, have never heard or read anything more beauful than this one.
नए साल का छप्पर लगे दो हफ़्ते गुज़र गये, मगर बीता साल है कि अब भी टपक रहा है कई-कई जगहों से बारिश की बूंदों के जैसे| बीस-बारह{2012} की ये पहाड़-सी ऊँचाई शायद घिस-घिस कर कम लगने लगे इसी पुराने के टपकते रहने से| आमीन...!
ReplyDeleteaaameennnnnnnnnnnn...............
Anonymous said...
ReplyDeleteHappy New Year !!!!
chaay waali ne kai baar kahaa hai ki ek badhiyaa saa choohe-daan khareed laao...par dil hi nahin kartaa natkhat choohon ko khud se alag karne kaa....
ab to inki sharaarat mein bhi mazaa aane lagaa hai...
'अनर्गल से अलाप' को एक नया अर्थ मिल गया !
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है सर जी .
ReplyDeleteजिंदगी का असली नाता तो पुरानी चीजों से ही तो होता है ..
कहीं पढ़ा था मैंने ..
पुरानी किताब,
पुरानी शराब ,
साथ में मेरी तरफ से पुराने ख्वाब !!
शानदार पोस्ट .
बधाई
कर्नल साहब आपके इस कविता में एक सैनिक का कोमल मन झलकता है । भावुक लोग ही पुरानी चीजों और लोगों में रमे रहते हैं ।
ReplyDeleteजब पढ़ी थी तभी कई कई बार पढ़ी थी.... आज बस बताने आ गई.... आप कभी कभी निःशब्द कर देते हैं.... वीर जी !!
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