लम्हा था कोई बहता हुआ जो अचानक ठिठक गया...लम्स था इक ठिठका हुआ, जो निर्बाध बह चला| नहीं, कुछ उल्टा सा हुआ था इसके लम्हा ठिठका हुआ था...लम्स बह रहा था| ऐसा ही कुछ था| बीती सदी की बात थी वो, तब वक्त देखने के लिए घड़ियाँ नहीं बनी थीं और छूने के लिए हाथ का होना जरूरी नहीं था| फिर भी समझ इतनी तो वयस्क हो ही गई थी कि लम्हे का ठिठकना या बह चलना और लम्स का बहना या ठिठक जाना, भांप लिया करती थी| बचपना तो इस मुई समझ का अभी अभी लौटा है...अभी के अभी, आधी रात गए| अब, रात को आधी कहने के वास्ते घड़ी की ओर देखना पड़ता है और छूने को महसूस करने की खातिर हाथ बढ़ाना पड़ता है
...समझ तब वयस्क थी या अब हुई है ?
दूर कहीं उस लम्हे की यादों से परे, उस लम्स के अहसासों से अलग...कोई आक्रोश उफनता है, एक वजूद को जलाता हुआ| कोई बेबसी उमड़ती है, एक वजूद को भिगोती हुई| सच को विवश कराहते देखते हैं दोनों मगर - आक्रोश भी, बेबसी भी| अपने-अपने दायरों में सिमटे, उलझे...गड्ड मड्ड|
...समझ का बचपना लौट आया है या कभी गया ही नहीं था ??
उस उफनते आक्रोश के सिवा, इस उमड़ती बेबसी के बिना और सबकुछ बेमानी हो जाता| सच तो यही है| कितना एकाकी-सा अपने पर विलाप करता हुआ सच| विवश कराहता हुआ, किन्तु उस लम्हे से भी बड़ा...उस लम्स से भी गहरा|
...समझ की वाकई कोई उम्र होती है क्या ???
जाने किस लम्हे, लम्स और सच में उलझे हुए उस पगले शायर ने कहा होगा कि
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
एक बार फिर से बोलती बंद है :)
ReplyDelete{कलात्मक ढंग से कहूँ तो लाजवाब}
मगर मुझे "बोलती बंद" पसंद है :}
...समझ की वाकई कोई उम्र होती है क्या ???koi umra nahi koi padaaw nahi -
ReplyDeleteसमझ सुकूं से बैठ जाये तो परेशानी नहीं होती है, पर जब समझ इधर उधर टटोलने लगे....
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक अलग अंदाज़ की ख़ूबसूरत पोस्ट
ReplyDeleteमेरी समझ से तो समझ को उम्र में बाँधना समझदारी नहीं है :)
मन की कशमकश और उधेड़बुन
ReplyDeleteसमझ की मासूमियत को कहाँ समझ पाते हैं भला
कब कहाँ कौन
किसी इम्तेहान में डाल दे,,, क्या पता !!
और पगला शायर तो यूं भी
कहा करता है .....
"जुनूँ ने, देखो तो, मेरा ही इम्तेहान लिया
ख़िरद भी मुझको परखने में कामयाब हुई"
यह विनम्रता दिल जीत लेती है गौतम ! हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसमझ को पकने में उम्र लगती है, और एक वक़्त हर चीज़ के लिए मुक़र्रर होता है.
ReplyDeleteवैसे, जब कोई चीज़ सुलझती है तो उलझती सी लगती है.
वाकयी समझ की कोई उम्र नहीं होती। यह किस लम्हा चले आये और किस लम्हा चले जाए कुछ पता नहीं।
ReplyDeleteसवाल:समझ की वाकई कोई उम्र होती है क्या ???
ReplyDeleteजवाब: नहीं
समझ का क्या है आये तो बच्चे को आजाये और ना आनी हो तो बुढापे में भी नहीं आये...
नीरज
बहुत खूब मेजर साहब !
ReplyDeleteऔर क्या हाल है ?
आपकी पोस्ट को पढकर जो जैसे शब्द तालू से चिपक जाते हैं.पंक्ति दर पंक्ति अचंभित करती सोच.
ReplyDeleteसच समझ की कोई उम्र नहीं होती.
...समझ तब वयस्क थी या अब हुई है ?
ReplyDeleteकितनी गहरी बात इतनी सहजता से कह देना ये आप ही कर सकते हैं।
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
ReplyDeleteमगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है...
गज़ब का शेर है...पता नहीं किस पगले शायर का है..
गद्यात्मक रूप में नज़्म लिख दी .......
ReplyDeleteइसपर कुछ बोलने के लिए पहले तो यह कला कहीं से सीख कर आनी होगी न....
आप सिखायेंगे ?????
इतना अंतराल न रखा कीजिये पोस्टों में ....
Aapne bade dinon baad likha hai....aur behad sundar likha hai!Aur kya kahun,samajh me nahee aata!
ReplyDeleteअधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
ReplyDeleteमगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है
बहुत सुन्दर. समझ की वाकई कोई उम्र नहीं होती.
गद्य है, पद्य है, शायरी है या एक ब्लॉग पोस्ट. जो भी है गजब है !
ReplyDeleteबच्चे समझ कर चिड़ियों की तरह चहचहाने लगते हैं, बुजुर्ग समझ-समझ कर चुप रहते हैं।
ReplyDeleteएक कश्मकश है,.इसे मासूमियत के लिबास में ओढ़ कर समझना ज्यादा अच्छा लगा . अब समझ आया तो नासमझी कहाँ या कहें मासूमियत कहाँ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगा.
अधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
ReplyDeleteमगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है...
समझ की वाकई कोई उम्र नही होती ।
अब तो समझ इतनी *विकसित* हो गई है छुअन का अहसास हाथों में नहीं होता .... सीधे दिमाग मे होता है.
ReplyDeleteछोटी सी बात मे कितनी गहरी अथाह सागर जैसी संवेदनायें छुपी हुयी हैं और इन संवेदनाओं से उभरते प्रश्न कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं___ सोच रही हूँ क्या समझ के लिये कोई उम्र होती है?--- नहीं--- अगर होती तो इस छोटी सी उम्र मे इतने प्रश्न न होते। आशीर्वाद।
ReplyDeleteसमझ की उम्र ..होती तो है ..तभी तो चीज़े उम्र के उस मोड़ पे अपनी शकले बदल कर मिलती है ....तभी तो जिंदगी जब गुजरे सफ्हे पलटती है ...कुछ लम्हे अंडर लाइन पड़े मिलते है .. कुछ रिश्ते रिवाइव होते है ....ओर कुछ वैसे ही.......
ReplyDeleteपर वो एक शायर ने कहा है न मेजर .....
सोच समझ वालो को नादानी दे मौला ....
missing you major..
सच है कि समझ को उम्र के साथ बाँधा नहीं जा सकता...
ReplyDeleteaapne padhne ki aadat dal di dhanyavad,
ReplyDeleteise tum bhi padho-
मेरी विनम्रता लगे दीनता,
अपनी बाइक को कहें पुष्पक, मेरी कार सरकारी परिवहन
उनकी मदिरा कहलाये सोमरस, मेरा प्याज भी खाना दुर्व्यसन
मेरा आदर-भाव लगे चापलूसी, उनकी हिकारत भी नमन
मेरे चुटकुले करें बदतमीजी, उनका क़त्ल करना भी टशन
मेरी ठिठोली गम्भीर छेड़-छाड़, उनका व्यभिचार भी बड़प्पन
मेरी पूजा लगे ढकोसला, उधर गालियों से हो प्रवचन
मेरे चूल्हे से फैले प्रदूषण, उनकी चिता भी जले तो हवन
अफवाह उड़े तो तेज तूफ़ान, उनका तहलका भी शीतल पवन
मेरी विनम्रता लगे दीनता, बोल्डनेस है उनका अकड़पन
मेरी हकीकत होती घमंड , उनके कमीनेपन में भी वजन
एक क्लिष्ट कविता । मेरी समझ में न आ सकी । हंस में आपकी या शायद पाखी में आपकी कहानी पढी थी तभी से आपके ब्लाग पर भी हाजिर न हो सका था ।
ReplyDeleteहद है बॉस ..... क्या लिखते हैं आप . जाल सा डाल देते हैं अल्फाजों का आप ,,,,,, और हम जैसी मछलियाँ बिलकुल फंसने के लिए तैयार सी बैठी रहती है...!!! लम्स का एहसास.... क्या कह डाला. तिस पर उस शेर ने तो कमबख्त जान ही ले डाली.
ReplyDeleteअधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है...!
गौतम भाई.... जिंदाबाद जिंदाबाद !
समझ के बारे में जब भी कुछ बोला समझ ने उसे झुठला दिया! कई बार पके बालों में भी बचपना झांकता दिखाई देता है...कई बार नादान बालक समझदारी में सबका बापू निकल जाता है! समझ की कोई उम्र नहीं होती शायद... ये अपनी उम्र खुद ही तय करती है!
ReplyDeleteक्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब्लॉग्स का संकलक है.
ReplyDeleteअधिक जानकारी के लिए पढ़ें:
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badi der se aati hain aapki post, par bahut hi uchch sreni ki.
ReplyDeletefursat me kuchh tippani karne aa jaya kijiye "kuchh kahna hai" par
adbhut!!
ReplyDeleteBhatakta bhatakta aapke blog tak pohoncha aur bargad ki chhanv mil gayi ..
Badhayi!!
महीने बाद आपके दर्शन करने आये हैं मेज़र ..
ReplyDeleteऔर ये छोटा सा सवाल ..क्या समझ की कोई उम्र होती है...इसका छोटा सा जवाब शायद नहीं ही है...
समझ किसी भी उम्र में आये ..सही है...
पर कमबख्त आकर चली जाए तो.....!!!
वो लम्हा इस वक़्त खूब याद आ रहा है...जब हाथ छूने के लिए हाथ की जरूरत नहीं थी...एक बेमानी सी नींद का एक सुहाना खाब था ...जब स्पर्श को महसूसने के बाद सुरक्षित कर लिया था...सहेज लिया था मिलन की घडी आने तक के लिए...
खैर...
बाहर आज बारिश के बाद सुहाना हो चला मौसम बुलाये जा रहा है .....पर दिल है कि आपके ब्लॉग पर यादों की छोटी सी खिड़की खोले जाने क्या क्या याद किये जा रहा है...
दर्पण के ब्लॉग पर भी नयी पोस्ट देखने के लिए क्लिक किया था...
पृष्ठ नहीं मिला
क्षमा करें, इस ब्लॉग में जिस पृष्ठ को आप खोज रहे हैं ...प्राची के पार ! वह मौजूद नहीं है.
समझ पर किया गया वो छोटा सा सवाल मुस्कुराने लगा है ...
:)
वाकई समझ की उम्र नही होती। शेर लाजवाब है । शुभकामनायें।
ReplyDeleteगज़ब!!
ReplyDeleteअधूरे सच का बरगद हूँ, किसी को ज्ञान क्या दूँगा
मगर मुद्दत से इक गौतम मेरे साये में बैठा है