16 April 2009
बारिश, बर्फ, ड्यूटी और...
...बारिश पसंद है मुझे। बहुत पसंद है। जाने कितनी स्मृतियाँ एकदम से सर उठायें चली आयी हैं...."जाओ, कमबख्तों मैं अभी ड्यूटी पर हूँ"। बारिश पसंद है, लेकिन छुट्टियों में। तापमान बिल्कुल गिर कर शून्य को छूने की होड़ में है। लगातार चौथा दिन...बारिश है कि थमने का नाम नहीं ले रही। दूर उस चोटी से सरकती हुई बर्फ़ की चादर मेरे बहक {पहाड़ों पर बनी गरेड़ियों की झोंपड़ी}की छत पे पहले से ही बिछी पतली बर्फिली चादर पर इक और परत बिछाने को उतावली है।
...और ऐसे मौसम में ज्यादा चौकस रहने की जरूरत...तो बाहर निकलता हूँ बहक की थोड़ी-सी कम सर्द घिराव से "सब ठीक-ठाक है?" देखने की नियत लिये घाटी की कंपकपाती सर्दी में। नीचे सर्पिली घुमावदार पतली सी सड़क....मेड-इन-जर्मनी का टैग लिये ये पावर दूरबीन बड़ी जबरदस्त है। चुस्त-सतर्क आँखें दूरबीन के लैंस के जरिये उस पतली सड़क की सुरक्षा में खड़े अपने जवानों की मुस्तैदी को परखती हैं... धान सिंह, सूबे, लक्षमण, मोहन चंद, प्रमोद, होशियार सिंह, तरसैम, ---एक-एक पर फिसलती आँखें। सही स्टांस। मजबूत पकड़ एके-47 के कुंदे पर। ---महिपाल, दूसरा वाला धान सिंह, दानू, तारा चंद---दूरबीन घूमती हुई---श्रीराम, भूप सिंह, लालाराम, पूरन चंद....पूरन चंद...चौंक कर फिर से वापस दूरबीन घूम कर ठिठकती है। पूरन चंद। लांस नायक पूरन चंद।... कमबख्त कैसे खड़ा है। लौंग स्लींग के सहारे एके गले से कंधे पे होते हुये उपेक्षित-सा लटका हुआ बांयी ओर।
पेड़ के सहारे दांये कंधे का टेक लिये। दोनों हाथ ट्राउजर के जेब में। ...ब्लडी इडियट!!! दूरबीन ज़ूम होती है...चेहरे का भाव...एक मधुर स्मीत सी मुस्कान पूरन के मुख पर।
पूरनssssssssssssssssssssssss....
इतनी दूर से मेरी आवाज उस तक कैसे पहुँचेगी भला।
दूरबीन का लैंस ज़ूम होकर पूरन के चेहरे को और करीब ले आता है...कैसी अजीब-सी मुस्कान। नशे में डूबी-सी मानो। सपनीली।...परसों ही तो छुट्टी से आया है वो। उसे तो अभी पूर्ण रिचारज्ड बैटरी की तरह अन्य की अपेक्षा और चाक-चौबंद मुस्तैद होना चाहिये।..मगर देख लो नालायक को !!!
"राधे--ओय राधे, जीप निकाल !"
"जी साब..."
ठंढ़ में सिकुड़ी-सी जीप भी खांस-खांस कर स्टार्ट होती है। रास्ते में राधे बताता है कि पूरन अभी-अभी शादी करके आया है।...और भक्क से ज़ूम हुए लैंस में चेहरे की उस अजीब मुस्कान का रहस्य खुलता है।...कमबख्त ख्वाब में है अपनी नयी-नवेली दुल्हन के। सोचता हूँ, कितनी क्रूरता होगी ये...उसे उसके ख्वाब से जगाना।
किंतु ये क्रूरता तो करनी पड़ेगी। महज ड्यूटी या कर्तव्यपरायणता के ख्याल से नहीं...उस नयी-नवेली दुल्हन के सुरक्षित भविष्य के लिये भी...
जीप झटके से रूकती है।
"कैसे हो पूरन?"
"जय हिंद, साब! ठीक हूँ साब!!"
एक कड़क सैल्यूट। एके पर उसकी पकड़ मजबूत हो जाती है।
"...तू ने अपनी शादी की मिठाई तो खिलाई ही नहीं...."
ड्यूटी का एक और बारिश भरा दिन सही-सलामत निकल जाता है।
हलफ़नामा-
एक फौजी की डायरी से...
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गयी फ़ुरसत / हमें गुनाह भी करने को जिंदगी कम है...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
:-) बहुत प्यारी पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार तरीके से आपने फ़ौजियों के मानविय जज्बातों को उकेर दिया है. विषय तो बहुत ही मार्मिक है और उस पर से आपकी भाषा शैली ने कमाल कर दिया.
ReplyDeleteमुझे अक्सर ऐसा लगता रहा है कि फ़ौजी मानविय मुल्यों के बहुत ज्यादा करीब होते हैं. आज पहले बार गजल से अलावा आपका लेखन पढा..पर मुझे तो इसमे भी एक फ़ौजी की कविता नजर आई. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बारिश भरे ड्यूटी के दिन का सुंदर चित्रण ऐसा लगा जैसे सारा माहोल सामने ही प्रस्तुत हो गया..
ReplyDeleteregards
gautam bhaaee salaam ...bas yahi kahunga ... agar ham sukun se nind me rahte hai to jarur koi jaagta rahta hai... sabhi jawaano ko salaam..
ReplyDeletearsh
इस माहौल को बहुत करीब से देखा है ..पढ़ते ही कई यादो की परत जैसे खुल गयी ...पूरनचन्द जैसे जवान एक क्षण के लिए शायद किसी ख्याल में खो जाए ..पर पलक झपकते ही फिर अपनी ड्यूटी पर मुस्तेद हो जाते हैं ..फिर आप जैसे चौकस करने वाले हैं न वहां :)
ReplyDeleteबहुत कठीन और विपरित परिस्थितियो मे आप और हमारे ज़वान देश की सुरक्षा के लिये हर पल तैनात रहते हैं।सलाम देश के सभी मतवाले,रखवालों को।बारिश मुझे भी बहुत ही पसंद है।मगर मै भी आप आप की जगह होता तो शायद मेरे लिये भी पसंद का मौसम ड्यूटी के बाद ही आता।हमारी और देश की सलामती चाहने वालो की सलामती की ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।
ReplyDeletemere rongte khade ho gaye, mujhe laga ab dant padegi puran ko, magar...........bahut achcha seema ka shabd chitra, hamare jawanon ki kartavyaparayanta, kul mila kar dil ko chhoota lekh. ishwar aapko shakti den, aisi paristhitiyon men kartavya karne ka hausla den, yahi meri prarthna hai aaj subah ki.
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteIshwar aap ko lambi umra deN
जहाँ रोज एक दिन निकल जाना .जैसे कवायद है...लगा जैसे वही पहुँच गया हूँ.पूरण सिंह के पास ...मेरा एक पेशेंट था .बिलकुल नया नया मेजर ... होली दिवाली अजीब से नंबर मेरे मोबाइल में दिखते....तो उधर श्रीनगर से मेजर साहब होते..मै पूछता कहाँ से फोन कर रहे हो....वो कहते डॉ साहब सॅटॅलाइट फोन है ....बाद में मै नंबर देखकर पहचान जाता ...
ReplyDeleteतुम्हे देख उनकी याद आती है....
आज की.....अभी तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट..
गौतम जी ,
ReplyDeleteबहुत कठिन स्थितियों में रहते हुए भी आप उसका इतना आनंद उठा रहे हैं .ये आपकी देश भक्ति ,अपने कम के प्रति वफादारी का प्रतीक होने के साथ ही देश के उन लाखों करोडों युवाओं के लिए सन्देश भी है जो सिर्फ बेकार की गपबाजी ,नेतागीरी ,चौराहों पर बैठकबाजी करके अपना सुनहरा समय बर्बाद करते हैं ..जिनके पास सिर्फ हालातों को कोसने के आलावा दूसरा कोई कम नहीं .
आप उन सौभाग्य शालियों में से एक हैं जिन्हें देश की सेवा सुरक्षा का मौका मिला है .
आपके इस जज्बे को सलाम .
हेमंत कुमार
गौतम जी
ReplyDeleteखूबसूरत चिट्ठी ...................आपका ये अंदाज़ देखा नहीं था, लाजवाब बांधा है आपने पूरे दिन की आपनी भावनाओं को. आपका फोजी अंदाज़ ..................क्या कहने
गौतम जी
ReplyDeleteखूबसूरत चिट्ठी ...................आपका ये अंदाज़ देखा नहीं था, लाजवाब बांधा है आपने पूरे दिन की आपनी भावनाओं को. आपका फोजी अंदाज़ ..................क्या कहने
देश की रक्षा को तैनात इन जाँबाजों को नमन.
ReplyDeleteईश्वर करे हर फौजी का हर ड्यूटी का दिन सही सलामत गुजरे.
ReplyDelete'कड़क salute!...'...idiot..'.सब इस जॉब का रूटीन हिस्सा हैं.कुछ अजीब नहीं लगता होगा.
लेख की आखिर पंक्ति --शादी की मिठाई!...दिल को छू गयी..हिम्मत बुलंद रहे!
सेना के सभी जवानों को सलाम!
गौतम जी क्या आपकी ये पोस्ट मीर की ग़ज़ल से कम खूबसूरत है...हरगिज़ नहीं...आप के हर लफ्ज़ से शायरी टपकती है...वाह...जिस अंदाज़ से आपने लिखा है उसकी जितनी तारीफ की जाये कम है...मैं भी पाँव ठोक , आप को कड़क सेलूट मार कर कहता हूँ..."जय हिंद"
ReplyDeleteनीरज
सुंदर लघुकथा!
ReplyDeleteगौतम जी आपकी पोस्ट दिल को छू गई। सभी जवानों को मेरा सेलूट।
ReplyDeleteduty aur jazbaat.......bahut achha laga dono ka mishran
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट दिल को छु गई आपकी गजल पर मजबूत पकड़ और उम्दा कहन के कायल तो हम हैं ही अब आपके लेखो पर भी दिल लुटाने का दिल करता है
ReplyDeleteवीनस केसरी
मेजर साहब ,
ReplyDeleteआपकी ये शानदार मेरे कैसी ग़ज़ल पढ़कर जाने क्यों वो शेर याद आ गया जो कभी आपको नज़्र किया था.............
सो कैसे पायेंगे हम सरहद पर जो गौतम की,
हाथ में ले गांडीव अगर टुकडी तैनात ना होगी
इअसी ही तस्वीर खींची है आपने......
पूरण को कहियेगा के बड़ा गर्व हुआ उस पर ....जब .....
एक पर उसकी पकड़ और मजबूत हो जाती है
आप और आपके सब जांबाजों को सलाम ,,,,,,,,,
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteगौतम जी, अद्भुत सृजन.... वाह.. आपके भीतर छिपे कथाकार को नमन.. इसे बाहर आने दो भाई...
ReplyDeleteबेहतरीन! अद्भुत!
ReplyDeleteप्रिय गौतम इस प्रकार से पाठक को चौंका देना एक अद्भुत कला है जो कि बहुत लोकप्रिय है । तुम गद्य में भी काम करना शुरू करो । तुम्हारा उस पर नियंत्रण दिखता है ।
ReplyDelete... कमाल-धमाल ... जानदार-शानदार ...!!
ReplyDeletefouzi ho, aour prakrti kaa eahsaas bhi...yahi hamare desh ki aour unke javano ki khasiyat hoti he..
ReplyDeletesabse pahle jay hind. likhte to aap behtreen ho hi, kintu jo sabse shandaar baat lagti he vo apne samay ke anupaalan ki..apne blog saathiyo se door rahne ke baad bhi bahut kareeb ho aap..mere to dil me rahte ho..yakinan janaab.
jis andaaz me aap likh tahe he vo hame aapke vnhaa ke haalat se rubru karata he..esa lagta he maano ham vnhi ho...par esi kismat nahi hamaari..vishesh tor par meri..jo bhi ho aap ke vichaaro ke saath me bhi hoo, ye kyaa kam he.
shukriya behtreen lekhan ke liye..
गौतम जी, आपको समर्पित
ReplyDeleteचंद पंक्तियाँ ...
उनका सोने का दिल है और भावों में समन्दर बसता है.
ये चट्टानी सीने वाले है पर बहुत मासूम अनेक बातों में.
बेखौफ,वहां खेलते है पिघला फौलाद जहाँ बरसता है
उनके हौसले को कर सलाम 'पाखी',
वतन महफूज है नेक हाथों में....
आप द्वारा मेरी पोस्ट पर टिप्पणी का आभार ...आप का स्नेह पूर्ण माग दर्शन बना रहे....!
दिल खुश हो गया आपकी ये पोस्ट पढ़ कर ...मोहब्बत से भरी पोस्ट
ReplyDeleteइस पोस्ट को लिखते वक्त जो आप महसूस कर रहे थे.. मैं अभी शायद वैसा ही महसूस कर रहा हूँ.. यही इस पोस्ट कि खासियत भी है कि अनायास ही सबको अपनी तरफ खींच लिया.. नयी दुल्हन के सुरक्षित भविष्य के लिए पूरण को ध्यान दिलाना ज़रूरी है.. कितनी गहरी बात कही आपने..
ReplyDeleteआई सेल्यूट टू दिस पोस्ट !
डा.अनुराग के मुताबिक आज की.....अभी तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDelete...और मेरी समझ के मुताबिक भी ..
.....देश की रक्षा को तैनात जाँबाजों को सलाम
बहुत शानदार. एक शायर ही ऐसी पोस्ट लिख सकता है.
ReplyDeleteऐसे बहाव में कलम चली है कि हम तो साथ बह गये. बहुत उम्दा पोस्ट-राईट फ्राम द सीन एण्ड बॉटम ऑफ हार्ट!!!
ReplyDeleteसुबीर गुरु जी की बात काबिले गौर है.
ReplyDeleteचिट्ठाचर्चा के माध्यम से पहली बार यहाँ आना बहुत ही सुखद अनुभव रहा. बड़ी सहजता सरल भाषा शैली में हम भी बर्फीली सरहदों पर पहुँच गए. भाव भीनी भाषा दिल को छू गई...
ReplyDeleteशानदार !
ReplyDelete" ये देस है वीर जवानोँ का,
ReplyDeleteअलबेलोँ का, मस्तानोँ का,
इस देस का यारोँ क्या कहना,
ये देस है दुनिया का गहना ..."
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
गौतम भाई,
आप की कथा पढकर,
दूर परदेस मेँ बैठे हुए भी
"भारत माता" के लिये
और उसके सच्चे सपूतोँ के लिये
गर्व , आदर और सलामती की दुआ
साथ मन से निकली है !
..पूरण के सपनोँ को
ईश्वर सदा यूँ ही मीठे रखेँ
..और आपको मिठाई मिले :)
हमेँ नाज़ है आप सभी पर ..
वँदे मातरम्`!!
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या
m speechless............
ReplyDeletem speechless............imaan daar tippanee to yahi ho saktee hai....
ReplyDeleteSuperb post..
ReplyDeleteअरे वाह, क्या मस्त पोस्ट है। दिल की बात को इस तरह सलीके से बयां करना बहुत कम लोगों को आता है। बधाई।
ReplyDelete-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
गौतम जी अब ये क्या गजब ढाने लगे आप .....? पहले एक से बढ़ कर एक ग़ज़लें ....और अब ये बेहतरीन पोस्ट.....आपने तो लाजवाब कर दिया मेजर साहब....अब कहाँ कहाँ तारीफ करूँ ....
ReplyDelete@ कैसी अजीब-सी मुस्कान। नशे में डूबी-सी मानो। सपनीली....
@ ठंढ़ में सिकुड़ी-सी जीप भी खांस-खांस कर स्टार्ट होती है...
@ उसे तो अभी पूर्ण रिचारज्ड बैटरी की तरह अन्य की अपेक्षा और चाक-चौबंद मुस्तैद होना चाहिये।..मगर देख लो नालायक को !!!
खुद देख लें ....एक डॉ साहब और अब एक आप....सुभानाल्लाह.....!!
गौतम भाई, आप तो गद्य में भी रंग जमाने लगे हैं। गुरूदेव को निश्चय ही बहुत सुकून मिला होगा अपनी वीरासत को इस तरह आपके हाथों में सुरक्षित देखकर। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई।
ReplyDeleteCHEEEEEEEEEERSSSSSSSSSSSS
ReplyDeletetaalibaan ka pakistaan par bahta shikanja ,aur aapsabka chak chauband rahna aapki post par aaye kisi bhi jajbaati insaan ke liye aapki duti ki hi tarah mustaid ,bhagwan aap sabko humaari umr se bhi nawaaje .
ReplyDeleteitni narmdili theek nahi major shaahab .
गौतम जी बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ प्रस्तुत रचना को पढ़ते हुए आपके एक नए रूप का भी दर्शन हुआ ग़ज़ल की तरह गद्द्य पर भी आपका पूरा अधिकार है,फौजी जीवन का जो दृश्य आपने प्रस्तुत किया हम सब उसे महसूस ही कर सकते है,
ReplyDeleteगीत ग़ज़ल जैसी विधाएं तो सब के लिए होती है दोस्त क्या दुश्मन क्या
लेकिन जो सरहद पर बुरी नज़र डाले उनके लिए सिर्फ ओर सिर्फ वीररस की कविता ही पेश करना लेखनी हो या बन्दूक आप के हाथ में दोनों ही जंचती हैं
जय हिंद
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete