शब्दों की बेमानियाँ...बेईमानियाँ भी | लफ़्फ़ाजियाँ...जुमलेबाजियाँ...और इन सबके बीच बैठा निरीह सा सच | तुम्हारा भी...मेरा भी |
तुम्हारे झूठ पर सच का लबादा
तुम्हारे मौन में भी शोर की सरगोशियाँ
तुम्हारे ढोंग पर मासूमियत की
न जाने कितनी परतें हैं चढी
तुम्हारे मौन में भी शोर की सरगोशियाँ
तुम्हारे ढोंग पर मासूमियत की
न जाने कितनी परतें हैं चढी
मुलम्मा लेपने की हो
अगर प्रतियोगिता कोई
यक़ीनन ही विजय तुमको मिलेगी
विजेता तुम ही होगे
अगर प्रतियोगिता कोई
यक़ीनन ही विजय तुमको मिलेगी
विजेता तुम ही होगे
किसी के झूठ कह देने से होता हो
अगर सच में कोई सच झूठ
तो लो फिर मैं भी कहता हूँ
कि तुम झूठे हो, झूठे तुम
अगर सच में कोई सच झूठ
तो लो फिर मैं भी कहता हूँ
कि तुम झूठे हो, झूठे तुम
तुम्हारा शोर झूठा है
तुम्हारा मौन झूठा है
तुम्हारे शब्द भी झूठे
तुम्हारी लेखनी में झूठ की स्याही भरी है बस
तुम्हारा मौन झूठा है
तुम्हारे शब्द भी झूठे
तुम्हारी लेखनी में झूठ की स्याही भरी है बस
तुम्हें बस वो ही दिखता है
जो लिक्खे को तुम्हारे बेचता है
तुम्हारे सच को सुविधा की
अजब आदत लगी है
जो लिक्खे को तुम्हारे बेचता है
तुम्हारे सच को सुविधा की
अजब आदत लगी है
यक़ीं मानो नहीं होता
समूचा झूठ बस इक झूठ भर
समूचा झूठ बस इक झूठ भर
मगर फिर सोचता हूँ
कि ऐसा कह के भी हासिल
भला क्या
कि आख़िर झूठ भी तो एक कविता है
कि ऐसा कह के भी हासिल
भला क्या
कि आख़िर झूठ भी तो एक कविता है
आखिर झूठ भी तो एक कविता है ...........बेहद सुन्दर !!
ReplyDeleteसुंदर रचना |
ReplyDeleteसच का पहन के सूट चला जा रहा है झूट।
ReplyDeleteसुंदर रचना आपकी।
Bahut badhiya, andar ka shor sunai de raha hai....
ReplyDeleteBahut badhiya, andar ka shor sunai de raha hai....
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुन्दर
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत के 'ग्लेडस्टोन' - गोपाल कृष्ण गोखले - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteक्या बात है ! बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 फ़रवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
बीच बैठा एक निरीह सा सच...
ReplyDeleteबहुत अच्छी पंक्ति है।
बेहद सुंदर कविता।
बीच बैठा एक निरीह सा सच...
ReplyDeleteबहुत अच्छी पंक्ति है।
बेहद सुंदर कविता।