18 February 2016

झूठ भी तो एक कविता है

शब्दों की बेमानियाँ...बेईमानियाँ भी | लफ़्फ़ाजियाँ...जुमलेबाजियाँ...और इन सबके बीच बैठा निरीह सा सच | तुम्हारा भी...मेरा भी | 

तुम्हारे झूठ पर सच का लबादा
तुम्हारे मौन में भी शोर की सरगोशियाँ
तुम्हारे ढोंग पर मासूमियत की
न जाने कितनी परतें हैं चढी

मुलम्मा लेपने की हो
अगर प्रतियोगिता कोई
यक़ीनन ही विजय तुमको मिलेगी
विजेता तुम ही होगे

किसी के झूठ कह देने से होता हो 
अगर सच में कोई सच झूठ
तो लो फिर मैं भी कहता हूँ
कि तुम झूठे हो, झूठे तुम

तुम्हारा शोर झूठा है
तुम्हारा मौन झूठा है
तुम्हारे शब्द भी झूठे
तुम्हारी लेखनी में झूठ की स्याही भरी है बस

तुम्हें बस वो ही दिखता है
जो लिक्खे को तुम्हारे बेचता है
तुम्हारे सच को सुविधा की 
अजब आदत लगी है

यक़ीं मानो नहीं होता
समूचा झूठ बस इक झूठ भर
मगर फिर सोचता हूँ
कि ऐसा कह के भी हासिल
भला क्या
कि आख़िर झूठ भी तो एक कविता है
 

12 comments:

  1. आखिर झूठ भी तो एक कविता है ...........बेहद सुन्दर !!

    ReplyDelete
  2. सच का पहन के सूट चला जा रहा है झूट।
    सुंदर रचना आपकी।

    ReplyDelete
  3. Bahut badhiya, andar ka shor sunai de raha hai....

    ReplyDelete
  4. Bahut badhiya, andar ka shor sunai de raha hai....

    ReplyDelete
  5. बहुत सटीक और सुन्दर

    ReplyDelete
  6. बहुत सटीक और सुन्दर

    ReplyDelete
  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत के 'ग्लेडस्टोन' - गोपाल कृष्ण गोखले - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  8. क्या बात है ! बेहद खूबसूरत रचना....

    ReplyDelete
  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 फ़रवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

    ReplyDelete
  10. बीच बैठा एक निरीह सा सच...
    बहुत अच्छी पंक्ति है।
    बेहद सुंदर कविता।

    ReplyDelete
  11. बीच बैठा एक निरीह सा सच...
    बहुत अच्छी पंक्ति है।
    बेहद सुंदर कविता।

    ReplyDelete

ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें...शुक्रिया !