पाल ले इक रोग नादां...
...ज़िन्दगी के वास्ते,सिर्फ सेहत के सहारे ज़िन्दगी कटती नहीं
06 March 2021
चुप गली और घुप खिडकी
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एक गली थी चुप-चुप सी इक खिड़की थी घुप्पी-घुप्पी इक रोज़ गली को रोक ज़रा घुप खिड़की से आवाज़ उठी चलती-चलती थम सी गयी वो दूर तलक वो देर तलक...
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17 February 2021
किसी सैंड-कैसल सा ढहता हुआ मैं
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थपेड़े समन्दर के सहता हुआ मैं किसी सैंड-कैसल सा ढहता हुआ मैं दीवारों सी फ़ितरत मिली है मुझे भी कि रह कर भी घर में न रहता हुआ मैं ...
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08 February 2021
मल्लिका - मनीषा कुलश्रेष्ठ
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पौ फटते ही कुहासे को चीर कर आती हुई ठाकुरद्वारे की घंटी की मद्धम सी आवाज़ जैसे गलियों से गुज़रती हुई घर की ड्योढ़ी तक पहुँचती है और अपनी पवित...
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31 January 2021
ये ग़ुस्सा
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यह ग़ुस्सा कैसा ग़ुस्सा है यह ग़ुस्सा कैसा कैसा है यह ग़ुस्सा मेरा तुझ पर है यह ग़ुस्सा तेरा मुझ पर है ये जो तेरा-मेरा ग़ुस्सा है यह ग़ुस्सा...
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13 October 2020
मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है
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"प्रतीक्षा के बाद बची हुई असीमित संभावना"...यही! बिलकुल यही सात शब्द, बस! अगर शब्दों का अकाल पड़ा हो मेरे पास और बस एक पंक्ति में ...
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