10 August 2008

हरा सूट और हरी वर्दी...


एक गीतनुमा कविता।किसी हरे सूट की याद में....कश्मिर की एक ठंढ़ी बर्फिली शाम कहीं सुदूर किसी छोटे से पहाड़ी टीले पर~~~कुछ तीन-चार वर्ष पहले।

हरे रंग का सूट तेरा वो और हरे रंग की मेरी वर्दी

एक तो तेरी याद सताये उसपे मौसम की सर्दी

सोया पल है सोया है क्षण

सोयी हुई है पूरी पलटन

इस पहर का प्रहरी मैं

हर आहट पे चौंके मन

मिलने तुझसे आ नहीं पाऊँ,उफ!ये ड्युटी की बेदर्दी

एक तो तेरी याद सताये उसपे मौसम की सर्दी

क्षुब्ध ह्रिदय है आँखें विकल

तेरे वियोग में बीते पल

यूँ तो जीवन-संगिनी तू

संग अभी किन्तु राईफल

इस असह्य दूरी ने हाय क्या हालत मेरी है कर दी

एक तो तेरी याद सताये उसपे मौसम की सर्दी


.....बस शब्दों का जोड़-तोड़ है और हरी वर्दी वालों का एक छोटा सच!!!

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना!!

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  2. ek vardi wala kavi bhi ab maidaan me aa gaya hai. Hare rang ki vardi me hare rang se judte anubhav wakai bhale se lage.

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  3. क्या खूब रचना लिखी है आपने गौतम जी बहुत बढ़िया।

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